परिवर्तन पर कविता – पुष्पा शर्मा
परिवर्तन अवश्यंभावी है,
क्योंकि यह सृष्टि का नियम है।
नित नये अनुसंधान का क्रम है।
सतत श्रम शील मानव का श्रम है।
परिवर्तन ज्ञान, विज्ञान में
परिवर्तन मौसम के बदलाव में
संसाधनों की उपलब्धियों की होड़ में।
परिवर्तन परिवार में
समाज राज्य देश में।
हर रीति और रिवाज में खान पान पहनावे में
नित नया उत्साह देता,
जीवन में खुशियाँ भर देता।
बदले फल फूल के रंग स्वाद भले
किंतु जड़ जमी रहे मिट्टी तले।
संभल पायेगा तभी आँधी
और तूफान से,
सधा रह बच सकेगा
विप्लव की बाढ से।
आग भी उसको जला
नहीं पायेगी
जड़ों की नमी उसे हर हाल में बचायेगी।
हमारी संस्कृति भी हमारी जड़ें हैं।
हमारा अस्तित्व है,पहचान है।
जिसके बल दुनियाँ में आज खड़े हैं।
हमारे आदर्श आज भी हमारे हैं
जग विकृतियों को कई बार सुधारे हैं।
उनसे जुड़े रहकर ही
महकना है जग में।
पहचान हर हाल में बनाये रखना है जहां में ।
पुष्पा शर्मा”कसुम”