पढ़ा-लिखा मूर्ख पर कविता
मोहम्मद तुगलक
तू हर बार
रात के अंधेरे में
करता है जारी
तुगलकी फरमान
जो लागू होते हैं
रात के अंधेरे में ही
तू उजालों से डरता तो नहीं
अपने फरमान सुनाने से पूर्व
कर लिया कर कुछ विचार
विगत में भी
जारी किए फरमान
गलत नहीं थे
सोने की जगह
तांबे की मुद्रा चलाना
उचित निर्णय था
राजधानी बदलना भी
उचित निर्णय था
उपयुक्त तैयारी का अभाव
रहा सर्वदा
विशेषज्ञ थे ही नहीं
या पूछे ही नहीं
वह अदूरदर्शिता ही है
जो तुझे करेगी स्थापित
पढ़ा-लिखा मूर्ख
–विनोद सिल्ला©
बिलकुल पढ़ा लिखा मुर्ख ही जो बिना तैयारी किये जनता पर आपने फैसला थोपना ,क्या जनता को परेशान देखकर तुम्हे मजा आता है न ?
Fantastic words