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सृष्टि कुमारी की कवितायेँ

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कविता संग्रह
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आज की नारी

मैं आज की नारी हूं, इतिहास रचाने वाली हूं,
पढ़ जिसे गर्व महसूस करे वो इतिहास बनाने वाली हूं।
नारी हूं आज की, खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं मैं,
बांध अपने जिम्मेदारियों का जुड़ा, अपने सपनों को पूरा करना चाहती हूं मैं।
अब अपने जुल्मों का शिकार नहीं बना सकता कोई मुझे,
अपने गगन को सितारों से सजने वाली किरण बेदी हूं मैं।
न मजबूर समझो, न लाचार हूं मैं,
अंतरिक्ष में परचम लहराने वाली कल्पना चावला हूं मैं।
न डरती अब मैं खाई से, न डरती ऊंचाई से,
पर्वत के शिखरों पर तिरंगा लहराने वाली अरुणिमा सिन्हा हूं मैं।
हां, मैं आज की नारी हूं, आवाज उठाने वाली हूं।
हो गई अति अब जुल्म नारी पर,अब इंसाफ की बारी है।
बहुत हो गया त्याग नारियों का,
अब नहीं होगा बलात्कार नारियों का।
पतन होगा अब दरिंदों और अत्याचारियों का,
मैं आज की नारी हूं, इंसाफ दिलाने आई हूं।
अब अबला नहीं, सबला है नारी,
अपने पैरों पर खड़ी स्वतंत्र जिंदगी जीने वाली है,
खुले आसमान में उड़ने वाली है।
मैं नारी हूं, अपने समाज का निर्माण करने वाली हूं,
अपने कर्तव्यों और आदर्शों की रक्षा करने वाली हूं मैं।
हां, मैं आज की नारी हूं, नारी को सम्मान दिलाने वाली हूं।
…………………………………………………..
( सृष्टि कुमारी)

कसम हिन्दुस्तान की

ऐ देश के वीरों तेरी कुर्बानी को अब व्यर्थ न जाने दूंगी,
तेरे खून के एक एक बूंदों का मैं गिन गिनकर बदला लूंगी।
सौगंध मुझे उस मातृभूमि का है, जिसने मुझे है जन्म दिया,
सौगंध है हर एक मांओं का, जिसने अपना बेटा खोया है।
ऐ आतंकियों को पालने वाले, कब तक छुपकर वार करोगे तुम?
तेरे कायराना हमले से भारतमाता ने बेटा खोया है।
ऐ वतन के दुश्मनों, तुझे हिसाब चुकाना होगा,
हर सुहागन के सिंदूर की कीमत तुझे चुकानी होगी।
तू छीनना चाहते हो कश्मीर को? जो भारत का स्वर्ग है,
अब कैसे मैं यह सहन करूं, ये भारतवर्ष हमारा है।
सौगंध मुझे उन शहीदों का है, मैं देश नहीं झुकने दूंगी,
मेरा वचन है उन वीरों को, कश्मीर नहीं मैं लूटने दूंगी।

।। सृष्टि कुमारी।।

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सफर मंजिल का

चाहत है मेरी आसमां छूने की, पर पंख नहीं है उड़ने को।
दिल चीख रहा है मेरा, लेकिन चेहरा खामोश है।

न चाहत है मेरी अमीरों-सी , न चाहत है मेरी फकीरों-सी,
बस एक मंजिल पाने की चाहत है, दौलत नहीं शोहरत की प्यासी हूं।

है शौक मुझे कुछ लिखने का, पर कलम उठने को तैयार नहीं,
रोक रही है परिस्थितियां मुझे, एक नई इबारत लिखने से।

जंग की इस दुनिया में, मंजिल पाना आसान कहां,
संघर्ष के बिना जीवन भी, सुपुर्द ऐ खाक हो जाती है।

पर, मैं कायर नहीं, झुकने को तैयार नहीं,
हर मुश्किल से लड़ने की ताकत है।
झुक जायेगी हर मुसीबत मेरे जज्बों के आगे,
संकल्प मेरा ये, मेरे सपनों के नाम है।
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।। सृष्टि कुमारी।।

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