जनसंख्या विस्फोट – महदीप जंघेल

विश्व जनसंख्या दिवस पर कविता

11 जुलाई 1987 को जब विश्व की जनसंख्या पाँच अरव हो गई तो जनसंख्या के इस विस्फोट की स्थिति से बचने के लिए इस खतरे से विश्व को आगाह करने एवं बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु 11 जुलाई 1987 को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई। तब से ग्यारह जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है।

जनसंख्या विस्फोट – महदीप जंघेल

जनसंख्या का दावानल
फैल रही चंहू ओर।
संसाधन सब घट रहे,
नही इसका कोई छोर।

गरीबी अशिक्षा लद रहे,
पड़ रही मंहगाई की मार।
दाने को मोहताज हो रहे,
जनसंख्या हो रही भरमार।

गरीब,और गरीब हो रहा,
धनवान,हो रहे धनवान।
आर्थिक तंगी जूझते,
मंहगाई झेल रहे आम इंसान।

परिवार विस्तृत हो रहा,
घट रहे जमीन जायदाद।
आबादी की भीषण बाढ़ में,
खाने को मोहताज।

बेरोजगारी के बोझ तले,
दब रहे सब इंसान।
जनसंख्या विस्फोट कुचल रही है,
क्या कर सकते है भगवान।

पेट्रोल डीजल आग लगा रहे,
हर चीज के बढ़ रहे दाम।
जनसंख्या विस्फोट से,
मिल रहा न कोई काम।

जल थल जंगल और गगन,
सब चीख के बोल रहे है।
बढ़ते जनसंख्या के दानव से,
समूचे पृथ्वी डोल रहे है।

एक दिन ऐसा आ सकता है,
जब जनसंख्या बोझ बढ़ जायेगा।
गरीबी,बीमारी,और बेरोजगारी से,
सब काल के गाल समा जायेगा।

कुछ ऐसा कर जाएं,
बाल विवाह बंद हो जाए।
सामाजिक कुरीतियों को दूर करें,
जनसंख्या वृद्धि थम जाए।

सामाजिक कुरितियों को रोके,
परिवार न अधिक बढ़ाएं।
जनसंख्या विस्फोट रोकने,
मिलकर अभियान चलाएं।

महदीप जंघेल, खैरागढ़, जिला -राजनांदगांव

Comments

  1. Ishu Ramteke Avatar
    Ishu Ramteke

    बहुत सुंदर रचना सर जी ।

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