प्रात: वन्दन – हरीश बिष्ट

जन-जन  की रक्षा है  करती |
भक्तजनों  के दुख भी हरती ||
ऊँचे   पर्वत   माँ   का   डेरा |
माँ   करती   है  वहीं  बसेरा ||

भक्त   पुकारे   दौड़ी   आती |
दुष्टजनों   को   धूल  चटाती ||
भक्तों   की करती  रखवाली |
जगजननी  माँ  खप्परवाली ||

भक्त सभी जयकार लगाते |
चरणों में नित शीश नवाते ||
मनोकामना    पूरी   करती |
खुशियों से माँ झोली भरती ||

  हरीश बिष्ट “शतदल”
   स्वरचित / मौलिक
रानीखेत || उत्तराखण्ड ||

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