
प्रातःकाल पर कविता
प्रातःकाल पर कविता श्याम जलद की ओढचुनरिया प्राची मुस्काई।ऊषा भी अवगुण्ठन मेंरंगों संग नहीं आ पाई। सोई हुई बालरवि किरणेअर्ध निमीलित अलसाई।छितराये बदरा संग खेलेभुवन भास्कर छवि छाई। नीड़ छोड़ चली अब तोपंछियों की सुरमई पाँत।हर मौसम में रहें कर्मरतसमझा…