भोर पर कविता -रेखराम साहू

भोर पर कविता –रेखराम साहू

सत्य का दर्शन हुआ तो भोर है ,
प्रेम अनुगत मन हुआ तो भोर है।

सुप्त है संवेदना तो है निशा ,
जागरण पावन हुआ तो भोर है।

द्वेष की दावाग्नि धधकी हो वहाँ,
स्नेह का सावन हुआ तो भोर है।

त्याग जड़ता,देश-कालोचित जहाँ,
कर्म-तीर्थाटन हुआ तो भोर है।

क्षुद्र सीमा तोड़,धरती घर हुई ,
नील नभ,आँगन हुआ तो भोर है।

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जब विदुर की भावना से शाक भी,
कृष्ण को माखन हुआ तो भोर है।

क्लेश हो नि:शेष,कलरव गा उठे ,
शांत जब क्रंदन हुआ तो भोर है।

हों सुखी,हों स्वस्थ,शुभ हो सर्व का,
दृढ़ मनन-चिंतन हुआ तो भोर है।

दैत्य उन्मूलन,सुरक्षा धर्म की।
ध्येय रामायन हुआ तो भोर है।

अन्नपूर्णा हो गई वंध्या धरा ,
स्वेद-अभिनंदन हुआ तो भोर है।

लोक-हित सर्वस्व-अर्पण भाव में ,
अंकुरित जीवन हुआ तो भोर है।

रेखराम साहू

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