विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

आज पर्यावरण पर संकट आ खड़ा हुआ है . इसकी सुरक्षा के प्रति जन जागरण के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने 5 मई को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का फैसला किया है . कविता बहार भी इसकी गंभीरता को बखूबी समझता है . हमने कवियों के इस पर लिखी कविता को संग्रह किया है .

विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

poem on trees
poem on trees

सुकमोती चौहान रुचि की कविता

आओ ले संकल्प ये,सभी लगाये पेड़।
पर्यावरणी हरितिमा,छाँव रहे हर मेड़।।

अंधाधुन पेड़ कट रहे,जंगल हुआ वीरान।
पर्यावरणी कोप से, हो तुम क्यों अंजान।।

आक्सीजन कम हो चला, संकट में है जीव।
दिन दिन निर्बल हो रही,पर्यावरणी नींव।।

जल जीवन की मूल है,इसे करे मिल साफ।
करे नहीं पर्यावरण,कभी मनुज को माफ।।

बचाइए पर्यावरण,यही हमारी जान।
हरी भरी जब हो धरा,यही हमारी शान।।


सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

विनोद सिल्ला की कविता

दूषित हुई हवा
वतन की 
कट गए पेड़
सद्भाव के 
बह गई नैतिकता 
मृदा अपर्दन में 
हो गईं खोखली जड़ें
इंसानियत की 
घट रही समानता 
ओजोन परत की तरह
दिलों की सरिता
हो गई दूषित 
मिल गया इसमें
स्वार्थपरता का दूषित जल
सांप्रदायिक दुर्गंध ने 
विषैली कर दी हवा
आज पर्यावरण 
संरक्षण की 
सख्त जरूरत है। 

-विनोद सिल्ला

रेखराम साहू पर कविता

सभ्यता का हाय कैसा ये चरण है ।
रुग्ण जर्जर हो गया पर्यावरण है ।
लुब्ध होकर वासना में लिप्त हमने,
विश्व में विश्वास का देखा मरण है।
लक्ष्य जीवन का हुआ ओझल हमारा,
तर्क का,विज्ञान का,धूर्तावरण है ।
द्रव्य संग्रह में सुखों की कामना तो,
ज्ञान का ही आत्मघाती आचरण है ।
हो न अनुशासन न संयम तो समझ लो,
मात्र,जीवन मृत्यु का ही उपकरण है ।
भाग्य है परिणाम कृत्यों का सदा ही,
कर्म की भाषा नियति का व्याकरण है ।
नीर,नीरद,वायु मिट्टी हैं विकल तो,
सृष्टि के वरदान का ये अपहरण है ।
पेड़-पौधे संग करुणा की लताएँ,
कट रहीं, संवेदनाओं का क्षरण है ।
है तिमिर पर ज्योति की संभावना भी,
सत्य-शिव-सौंदर्य, ही केवल शरण है ।
कर प्रकृति-उपहार का उपयोग हितकर,
प्रेम का प्रतिबिम्ब ही पर्यावरण है ।

रेखराम साहू

शशिकला कठोलिया की कविता

वृक्ष लगाने की है जरूरत,                          
पर्यावरण बचाने को ,
एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                               
मानव तुझे जलाने को ।

जो लोग कर रहे हैं ,
वनों का विनाश ,
क्या उन्हें पता नहीं ,
इसी में है उनकी सांस ,
गांव शहर सब लगे हुए हैं ,
अपना घर सजाने को ,
एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
मानव तुझे जलाने को ।

हर कोई कर रहे हैं ,
प्रदूषण का राग अलाप ,
पर कोई नहीं बदलता ,
अपना सब क्रियाकलाप ,
मिलकर समझाना होगा ,
अब तो सारे जमाने को ,
एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
मानव तुझे जलाने को ।

पर्यावरण बचाने की ,
हम सब की है जिम्मेदारी ,
संभल जाओ लोगों ,
नहीं तो पछताओगे भारी ,
एक अभियान चलाना होगा,
जन-जन को समझाने को ,
एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
मानव तुझे जलाने को ।

वृक्ष ना काटो वृक्ष लगाओ ,
विश्व में हरियाली लाओ ,
सालों साल लग जाते हैं ,
एक पेड़ उगाने को ,
एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                             

मानव तुझे जलाने को ।

श्रीमती शशि कला कठोलिया, उच्च वर्ग शिक्षिका, 
अमलीडीह, पोस्ट-रूदगांव ,डोंगरगांव,
जिला- राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

महेन्द्र कुमार गुदवारे की कविता


पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
सब मिल भैया,अलख जगाओ।
पेड़ मित्र है, पेड़ है भाई,
पेड़ से होता, जीवन सुखदाई।
एक , एक सबको बतलाओ,
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
सब मिल भैया,अलख जगाओ।
पर्यावरण करे शुद्ध हमारा,
प्रदुषण का है, हटे पसारा।
आगे आओ सब, आगे आओ,
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
सब मिल भैया,अलख जगाओ।
पेड़ से सुन्दरता है आए,
जो है सबके मन को भाए।
नेक विचार यह मन मेंं लाओ,
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
सब मिल भैया,अलख जगाओ।
फल , फूल ,पत्तियाँ ,छाल के,
एक , एक सब कमाल के।
दवा ,औषधि अनमोल बनाओ,
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
सब मिल भैया,अलख जगाओ।
सच्चा साथी है यह जीव का,
सुखमय जीवन के नीव सा।
इससे कतई तुम दूर न जाओ,
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
सब मिल भैया,अलख जगाओ।
~~~~~
महेन्द्र कुमार गुदवारे ,बैतूल

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