प्रीत पुरानी
१६ मात्रिक मुक्तक
थके नैन रजनी भर जगते,
रात दिवस तुमको है तकते
चैन बिगाड़ा, विवश शरीरी,
विकल नयन खोजे से भगते।
नेह हमारी जीवन धारा।
तुम्हे मेघ मय नेह निहारा।
वर्षा भू सम प्रीत अनोखी,
मन इन्द्रेशी मोर पुकारा।
पंथ जोहते बीते हर दिन,
तड़पें तेरी यादें गिन गिन।
साँझ ढले मैं याद करूँ,तो,
वही पुरानी आदत तुम बिन।
यूँ ही परखे समय काल गति।
रात दिवस नयनों की अवनति।
तुम्ही हृदय हर श्वाँस हमारी,
आजा वर्षा मत कर भव क्षति।
बैरिन रैन कटे बिन सोये।
जागत सपने देखे खोये।
इन्तजार के इम्तिहान में,
कितने हँसते,कितने रोये।
प्रातः फिर अपने अवलेखूँ।
रात दिवस भव सपने देखूँ।
आजा अब तो निँदिया वर्षा,
तेरी यादें निरखूँ बिलखूँ।
धरा प्राण दे वर्षा रानी।
जीव त्राण दे हे दीवानी।
प्रीत पुरानी, यादें वादे,
पूरे करिये मन मस्तानी।
जग जानी पहचानी,धानी।
वही वही भू बिरखा रानी।
तुम मन दीवानी,अलबेली,
तो हम भी जन रेगिस्तानी।
————-
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,’विज्ञ’