प्रताप का राज्यारोहण-बाबूलाल शर्मा

प्रताप का राज्यारोहण-बाबूलाल शर्मा

कविता संग्रह
कविता संग्रह

मापनी- २२१ २२२, १२२ १२२ २२ वाचिक
. *प्रताप का राज्यारोहण*
. १
सामंत दरबारी, कहे यह कुँवर खल मति मद।
रक्षण उदयपुर हित, सँभालो तुम्ही राणा पद।
सौगंध बप्पा की, निभे जब मुगल हो बाहर।
मेवाड़ का जन जन, पुकारे सजग उठ नाहर।
. २
राणा बनो कीका, कुँवर अब स्वजन से अड़ कर।
महिमा रखें महि भी, हमारी मुगल से लड़ कर।
भामा सहित सब जन, सनेही त्वरित उठ आए।
चावँड विजन महका, तिलक कर मुकुट पहनाए।
. ३
जय हो भवानी जय, शिवम जय नए राणा जय।
दीवान शिव के तुम, कहे सब महा राणा जय।
होगा प्रतापी तव, सुयश शुभ कहे गुरु जन सब।
गज अश्व भाला धनु, सजाए उठे असि कर तब।
. ४
बहु भाँति उत्सव शुभ, मना वह धरा रक्षण का।
प्रण वीर तत्पर था, चुकाने रहन कण कण का।
संकल्प राणा ने, किया हित धरा जन हित में।
है ‘विज्ञ’ ‘शर्मा’ का, नमन जो बसा हर चित में।


…✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

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