रफ़्ता-रफ़्ता मेरे पास आने लगे
रफ़्ता-रफ़्ता मेरे पास आने लगे
हर कहीं हम यहाँ गुनगुनाने लगे
प्यार की अधखुली खिड़कियों की डगर
एक दूजे में हम सामने लगे.
इस जनम के ये बन्धन गहराने लगे
दूर रहकर भी वो मुस्कुराने लगे
ग़म यहाँ कम मिलेगा हमारे सिवा
दर्द की छाँव भी अब सुहाने लगे.
रिश्तों की कसौटी पे आने लगे
वो हमें हम उन्हें अपनाने लगे
मैने उनसे न जाने क्या कह दिया
ख़्वाब मेरे उन्हें रास आने लगे.
हरकदम हमकदम वो दीवाने लगे
तिश्नगी अपनी मुझसे बुझाने लगे
इश्क़ ने उनपे जादू ऐसा किया
मुझको अपना वो रब अब बताने लगे.
गीत मेरे उन्हें अब लुभाने लगे
लब हिले उनके वो गुनगुनाने लगे
ज़िन्दगी ने हमें ऐसा तोहफ़ा दिया
प्यार में है ख़ुदा सब बताने लगे.
राजेश पाण्डेय अब्र
अम्बिकापुर
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