शबरी पर कविता/ सौदामिनी खरे दामिनी
शबरी सी भक्ति मिले,
जीवन सुगम चले,
प्रभु के आशीष तले,
होवे नवल विहान।
यह भीलनी साधना,
रही निष्काम भावना,
कठिनाई से सामना,
गुरु वचनों को मान।
लोभ मोह छोड़कर,
भक्ति भाव जोड़ कर,
राम नाम बोल कर,
लगाया प्रभु से ध्यान।
मीठे बेरों को तोड़ती,
वो कुटिया बुहारती,
फूल राहों में डालती,
ढलता है अवशान।।