तृषित है मन सबका!

तृषित है मन सबका!
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शंकर ने, विष पान किया,
तब नील कण्ठ कहलाए,
व्याघ्र चर्म का, वसन पहनकर,
मंद मंद मुसकाए!
विष धर को, गलहार बनाया,
नंदी पीठ बिरजाए,
चंद्र शीश पर रखकर, शिव जी,
चंद्रमौली कहलाए!
पर्वत पर आशियां बनाया,
डमरू हाथ बजाए,
कंद मूल खाकर ही जिसने,
ताण्डव नृत्य सिखाए!
प्रतीकात्मक ही इसे मानकर,
स्तुति करते आए,
मन है तृषित, आज हम सबका,
दुनिया में भरमाए!
कहे कबीरा संतन जन को,
न्याय वही दे पाए,
जिसने कष्ट सहे जीवन में,
महा काल बन जाए!
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पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।