गंगा की पुकार
गंगा घलो रोवत हे,देख पापी अत्याचार।
रिस्तेदारी नइये ठिकाना,बढ़गे ब्यभीचार।।
कलयुग ऊपर दोष मढत हे,
खुद करम में नहीं ठिकाना।
कइसे करही का करही एमन
ओ नरक बर करही रवाना।।
स्वार्थ के डगर अब भारी होगे
अनर्थ होत हे प्यार।
प्यार अंदर अब नफरत हवय
बढे हवय अत्याचार।।
प्यार नाम अब धोखा हवे
सुन लौ जी संत समाज।
हृदय काकरो स्वच्छ नहीं
जहर भरे हवय आज।।
जहरीला हवय तन हा भाई
मन हवय गंदा।
कलयुगी पापी देख देख,
रोवत हवे माई गंगा ।।
लोगन कइथे सभ्य जमाना
अनपढ़ रिहिस नादान।
कवि विजय के कहना हवय
अनपढ़ रिहिस भगवान।।
नता गोता ला खुब मानय
गांव बसेरू परिवार।
सबके बेटी,सब कोई मानय
हृदय बसाय सत्कार।।
, डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर