मनीलाल पटेल की लघु कविता
किसके बादल?
स्वप्न घरौंदे तोड़के
उमड़ता, घुमड़ता ।।
बिना रथ के नभ में
ये घन किसे लड़ता?
नगाड़े ,आतिशबाजी
नभ गर्जन है शोर ।
सरपट ही जा रहा
किसके हाथों में डोर?
भीग रहे, कच्ची ईंटें
पकी धान की फसल
किसान का ये नहीं तो,
भला किसके बादल?
मनीभाई नवरत्न, छत्तीसगढ़
सब है संभव- मनीभाई नवरत्न
जो
शेष
जीवन
बस वही
विशेषतम
कर कोशिश तू
खुद को बदलना
गर जग जीतना
सब है संभव
ले के विश्वास
हो प्रयास
जीतेगा
बस
तू।
#मनीभाई”नवरत्न”
तृण-तृण चुन
तृण-तृण चुन।
स्वनीड़ बुन।
है जब जुनून ।
छोड़ कभी ना
अपनी धुन ।
ना रख पर आश।
ना बन तू दास ।
फैला स्वप्रकाश ।
स्वाभिमान रख पास ।
तज तू भेड़चाल ।
फैला ना कोई जाल।
पैसे का ना हो मलाल ।
नेकी कर दरिया में डाल।
कर्म पथ पर औंटा खून ।
दिल की बात अपनी सुन ।
मांग रोटी बस दो जून ।
भरा रहे मन संतोष सुकून ।
तृण-तृण चुन।
स्वनीड़ बुन।
है जब जुनून ।
छोड़ कभी ना अपनी धुन ।