श्रम श्वेद- बाबूलाल शर्मा (ताटंक छंद)

ताटंक छंद ~
विधान :- १६, १४ मात्राभार
दो दो चरण ~ समतुकांत,
चार चरण का ~ छंद
तुकांत में गुरु गुरु गुरु,२२२ हो।

श्रम श्वेद- बाबूलाल शर्मा (ताटंक छंद)

कविता संग्रह
कविता संग्रह


बने नींव की ईंट श्रमी जो,
गिरा श्वेद मीनारों में।
स्वप्न अश्रु मिलकर गारे में।
चुने गये दीवारों में।
श्वेद नींव में दीवारों में,
होता मिला दुकानों में।
महल किले आवास सभी के,
रहता मिला मकानों में।
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बाग बगीचे और वाटिका,
सड़के रेल जमाने में।
श्वेद रक्त श्रम मजदूरों का,
रोटी दाल कमाने में।
माँल,मिलो,कोठी अरु दफ्तर,
सब में मिला पसीना है।
हर गुलशन में श्वेद रमा है,
हँसती जहाँ हसीना है।
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ईंट,नींव,श्रम,श्वेद श्रमिक की,
रहे भूल हम थाती है।
बाते केवल नाहक दुनिया
श्रम का पर्व मनाती है।
मजदूरों को मान मिले बस,
रोटी भी हो खाने को।
तन ढकने को वस्त्र मिले तो,
आश्रय शीश छुपाने को।
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स्वास्थ्य दवा का इंतजाम हो,
जीवन जोखिम बीमा हो।
अवकाशों का प्रावधान कर,
छह घंटे श्रम सीमा हो।
बच्चों के लालन पालन के,
सभी साज अच्छे से हो।
बच्चों की शिक्षा सुविधा सब,
सरकारी खर्चे से हो।
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बाबू लाल शर्मा, “बौहरा” विज्ञ

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