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सर्व शक्ति का रूप है नारी /रचयिता:-डी कुमार–अजस्र

सर्व शक्ति का रूप है नारी /रचयिता:-डी कुमार–अजस्र

(स्त्री संघर्ष की अनन्त गाथा…)

सर्वशक्ति का रूप है नारी

कविता संग्रह
कविता संग्रह

काली तू ,दुर्गा लक्ष्मी भी तू ,शक्ति की रूपा तू पूजित है नारी ।1।

विद्या-वर पाने की चाह में ये जग ,बन गया धंवला का भी पुजारी ।2 ।

सती रूप में पूजी जाये फिर ,अबला क्यों समझे इसे संसारी ।3।

सृष्टि का हित अर्पण यों चित्त में नारी ने लिया जो बीज सुधारी ।4।

नारी ही ले गई नारी (डॉक्टर)के गेह तब, नारी ने नारी पे विपदा यों डारी ।5।

नारी ही नारी की कोख में आई, पीड़ा यह देखो है कितनी भारी ।6।

नारी ही नारी से अब यों कहे है ,मेरी ही कोख तू क्योंकर पधारी ।7।

पग न धरा धरती पर पहले ही, नारी को लगी ये कैसी बीमारी ।8।

कोख से ही उस लोक को भेजन को, कर तो रही ये दुनियां तयारी ।9।

कोख में सुनती है मन ही मन धुनती है ,जाऊँ न जाऊँ यह संशय भारी ।10।

दिन दिन कर यों मास गुजर गए ,आखिर तो होनी थी यह महि भारी ।11।

छायी मायूसी ,पड़ी थी उदासी, नारी की गोद में रोए अब नारी ।12।

नारी के आवन की फैली खबर जब ,आस पड़ोस में दुःख की फैलारी ।13।

आस बंधाये बस लल्ला की ,बन जाओ आज तो धीरनधारी ।14।

पिटती घसीटती हुई बड़ी तब, मन ही मन सोचे विपदा में नारी ।15।

नारी ही नारी से रोकर ये पूछे ,आई जन्म ले जग में क्यों नारी ।16।

नारी भी आखिर करे भी तो क्या ,नारी की दुश्मन हुई आज नारी ।17।

किससे कहे किसको माने अपना ,जननी लगे जननी से भी न्यारी ।18।

बांध रक्षा का सूत्र भाई के लेती है नारी रिश्तों से उधारी ।19।

बाबुल भी देता बस यों आशीष ,प्रीत निभावन,इस जग को तारी।20।

आस बंधाये खुद ही को मन ही मन ,आएगी कब ही तो मेरी भी बारी ।21।

पढ़ी लिखी जस तस करके तब ,नारी सुधारने की की जो तयारी ।22।

लुच्चे के रूप में जब कभी नर ने ,नारी किशोरी पर आँख जो डारी ।23।

लाज बचावन हित नारी के आ गए, बीच सभा में वो ही चक्रधारी ।24।

प्रेमी बने, गोपियाँ भी नचाई ,मीरा के देखो वो कृष्णमुरारी ।25।

ईश भी शक्ति को जान न पाया ,कैसे बचाये नारी से ही नारी ।26।

राह में पर्वत सागर खड़े कर ,जाल बिछा दिए नारी को नारी ।27।

पथ में झुकी न ,राह रुकी न, बढ़ती रही भल बिपदा थी भारी ।28।

किए प्रयास दिन हो भल रात ,आनी ही थी तो सफलता सारी ।29।

भेजा विधाता ने सोच समझ उसे ,तोड़न को इस जग की खुमारी ।30।

ऐंठा था बल बैठा था नर, नारी के बिन था वो बिन आधारी ।31।

आई नारी सम्भला घर निकेतन ,जोड़ी बना दी उसी के नुसारी ।32।

चहका घर आँगन बजे ढोल और घन आस पड़ोस खुसुर पुसुरारी ।33।

गुजरी चांदनी चार दिनन की ,नारी को हत हुई फिर नारी भारी।34।

पद गरिमा का , मान प्रणाम का ,जननी की देखो ये कारगुजारी।35।

पल पल यों गुजरे देते ताने ,जैसे कि घर बैठा हो दुश्मन भारी ।36।

करे षड्यंत्र जीतन को यों जंग, दण्ड और भेद (साम, दाम,दण्ड, भेद)बस बचा उधारी ।37।

सहती भी रहती ,मुख से न कुछ कहती, बाबुल की पग लगती अब भारी ।38।

पी का भी तो पपीहा ना बोले ‘श्रवण’ को भी तो बाण (बातों या तानों के)है मारी ।39।

वचन थे सात ,लिये भी थे संग संग ,लेकिन निबाहन को थी बस नारी ।40।

दिन दिन गुजरे इसी ऊहापोह में ,कर्मकांड अनवरत रहे जारी ।41।

पहुँची खबर बाबुल के घर भी तब, किया प्रयास गृहस्थ सुधारी ।42।

विपदा बढ़ी देखी जब बाबुल ने तो, राह दिखाई उसे तब सारी ।43।

लोपा ,गार्गी (भारत के इतिहास की विदुषी महिलाएँ)बन कर ही तू ,जग जीतन की कर सकती तयारी ।44।

झांसी की रानी और रजिया ने, जीता था जग, अब तेरी है बारी ।45।

नारी को नारी से ही लड़ना है फिर क्यों न जीतेगी आखिर को नारी ।46।

नर तो तब भी संग था नारी के नर तो अब भी संग ही है नारी ।47।

उठ जाग ,सम्भल ,हथियारन से काट, कुप्रथाओं की है बेड़ी सारी ।48।

बढ़ आगे थाम इंदिरा (प्रियदर्शिनी/नुई)कल्पना को, सुनीता (अंतरिक्ष यात्री )जोहे है बाट तिहारी ।49।

जीत तेरी भी आखिर है पक्की ,ठान लिया जो कर ली तयारी ।50।

खुद को खुद ही से लड़ना है री ,क्योंकर न जीतेगी तू तो प्यारी ।51।

मन से मिटा द्वेष नारी के प्रति ,लगा ले हिय तू नारी को नारी ।52।

बन इस जगरथ का दूसरा पहिया शक्तिरूपा तू ही तो है नारी ।53।

नारी ही नारी से यदि ना बढ़ेगी सृष्टि बढ़ेगी ये कैसे अगाड़ी ।54।

नारी को नारी ,दे यदि सम्बल, शक्ति महिला (महिला सशक्तिकरण)की हो जाये भारी।55।

नर भी जो पूरक है नारी का ,उस ही ईश्वर का है अवतारी ।56।

शक्ति के मग बल भक्ति के जग में ,वह क्यों रहे तेरे ही पिछारी ।57।

याद हमेशा अर्धांग (अर्धनारीश्वर शिव)को रखना, मंजिल आएगी पास तुम्हारी ।58।

बाग तू है बागबान है वो ,इस जग में देखो सब दिश हरयाली ।59।

घर परिवार महकेगा तेरा भी जब ,खुश्बू उड़ेगी सब दिशरारी ।60।

✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज)*

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