प्रस्तुत कविता नंदावत हे बिसरावत हे अनिल जांगड़े द्वारा रचित है जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार से वक्त के साथ बहुत सारी चीजें अनुपयोगी होकर उनके स्थान पर दूसरी वस्तु ले जाती है।
नंदावत हे बिसरावत हे
पुरखा मन के बनाये रीति ह
देख धीरे धीरे सिरावत हे
गाॅंव गॅंवई के हमर चिनहारी
नंदावत हे बिसरावत हे
गोरसी नंदागे बहना नंदागे
नंदागे रे खपरा के रोटी
दइहा दुधहा सिखर नंदागे
देख नंदागे रे खेलत गोटी
घर के दुवारी आगी मंगाई
छिटका नई छिड़कावत हे
गाॅंव गॅंवई के हमर चिनहारी
नंदावत हे बिसरावत हे।
दौरी नंदागे रे बेलन नंदागे
नंदागे रे कलारी तुतारी
ढेंकी जाता हर सबो नंदागे
नंदावत हे जग ल भंवारी
मेड़ मेडवार के हरहा बइला
गली म नई मेछरावत हे
गाॅंव गॅंवई के हमर चिनहारी
नंदावत हे बिसरावत हे।
कुॅंआ पटागे पटागे रे घुरवा
नंदावत हे छानी कुरिया
किसा कहानी ददरिया नंदागे
नंदागे रे रांधे के हंड़िया
नइये खवइया बोरे बासी के
पेज पसिया नई फेकावत हे
गाॅंव गॅंवई के हमर चिनहारी
नंदावत हे बिसरावत हे।
अनिल जांगड़े
8120861255