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चार के चरचा/ डा.विजय कन्नौजे
चार के चरचा
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चार दिन के जिनगी संगी
चार दिन के हवे जवानी
चारेच दिन तपबे संगी
फेर नि चलय मनमानी।
चारेच दिन के धन दौलत
चारेच दिन के कठौता।
चारेच दिन तप ले बाबू
फेर नइ मिलय मौका।।
चार भागित चार,होथे
बराबर गण सुन।
चार दिन के जिनगी म
चारो ठहर गुण।।
चार झन में चरबत्ता गोठ
चारो ठहर के मार।
चार झनके संग संगवारी
लेगही मरघट धार।।
चार झन के सुन, मन म गुण
कर सुघ्घर काम।
चार झन ल लेके चलबे
चलही तोर नाम।।छत्तीसगढ़ में रिश्ता राम के/ विजय कुमार कन्नौजे
छत्तीसगढ़ में रिस्ता राम के / विजय कुमार कन्नौजे
छत्तीसगढ़ के मैं रहइया
अड़हा निच्चट नदान।
छत्तीसगढ़ में भाॅंचा ला
मानथन सच्चा भगवान।
बहिनी बर घातेच मया
मिलथे गजब दुलार
दाई के बदला मा बहिनी
देथे गा मया भरमार।
कौशल्या दीदी बड़ मयारू
छत्तीसगढ़ के शान
जेकर गोदी म जनम धरिस
श्री राम चंद्र भगवान ।
बारा बच्छर बन मा काटिस
छत्तीसगढ़ के कोरा म।
केवट करा गोड़, धोवइस
शबरी रिहिस हे अगोरा म।
सबुत घलो बतावत हावय
मोर गोठ बिल्कुल सांचा ये।
धन हवय हमर भाग संगी
राम छत्तीसगढ़िहा भाॅंचा ये।
गोड़ धोथन अऊ पांव पडथन
भाॅचा ला मानथन भगवान
कवि विजय के अर्जी सुनके
दरशन दे दे मोला सिया राम।
वनदेवी रूप में बहू रानी हा
काटिस अकेला बनवास।
बाल्मीकि आश्रम तुरतुरिया
जग जननी करिस वास।
गजब मया छत्तीसगढ़ में
छत्तीसगढ़िहा रिस्ता राम के
गोड़ धोवव, माथ नवावव
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के।खिचड़ी भाषा त्याग कर / डाॅ विजय कुमार कन्नौजे
खिचड़ी भाषा त्याग कर
खिचड़ी भाषा त्याग कर
साहित्य कीजिए लेख।
निज जननी को नमन करो
कहे कवि विजय लेख।।
हिन्दी साहित्य इतिहास में
खिचड़ी भाषा कर परहेज।
इंग्लिश शब्द को न डालिए
हिन्दी वाणी का है संदेश।।
हिन्दी स्वयं में सामर्थ्य है
हर शब्दों का उल्लेख।
हर वस्तु का हिन्दी नाम है
हिन्दी शब्दकोश में लेख।।
हिन्दी इतना कमजोर नहीं
जो मिलायें खिचड़ी भाषा।
सभी भाषा का अपमान है
क्यों करते मिलावटी आशा।
टांग टुटकर द्वी भाषा की
लंगड़ाईयां ही आती है।
साहित्य सृजन कार हिंदी का
मुस्काईयां भी आती है।
क्षमा क्षमा चाहूंगा क्षमा
इन साहित्य कारों से।
साहित्य सृजन कीजिए
हिन्दी विशेषांक विचारों से।।रसायन चुर्ण हिन्दी/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे
रसायन चुर्ण हिन्दी
हिन्दी शब्दकोश खंगालकर
शब्द चयन कर साथ।
शब्दकोश का भंडार पड़ा है
ज्ञानार्जन दीजिए बाट।।
हिन्दी कोष महासागर है
पाते हैं गोता खोर।
तैर सको तो तैर सागर को
गहरा है अति घोर।।
डुबकी लगाये अंदर जावें
गोता लगावें, गोता खोर।
आसमान सा ऊपर हिन्दी
पताल पुरी सा गहरा छोर।।
सृजन साहित्य,नवरस धारा
रस छंद दोहा अलंकृत है।
संधि समास परिपुर्ण हिंन्दी
वर्ण माला भी सुसज्जित है।
सात स्वर संगीत की धारा
ब्याकरण से परिपूर्ण है।
आंनद भर उल्लास करती
महौषधि रसायन चूर्ण है।।