हसदेव जंगल पर कविता
हसदेव जंगल उजार के रोगहा मन
पाप कमा के मरही।
बाहिर के मनखे लान के
मोर छत्तीसगढ़ म भरही।।
कभु सौत बेटा अपन नी होवय,
सब झन अइसन कइथे।
सौत भल फेर सौत बेटा नही
सौतिया डाह हर रइथे।।
हसदेव जंगल दवई खदान
सब जंगल ल उजाड़ही।
बिन दवई बुटी के ,जन-जन ल रोगहा मन मार ही।।
जंगल झाड़ी काट काट के
कोयला खदान लगाही।
ये रोगहा सरकार घलो हा
परदेशिया मन ल बसाही।।
का मुनाफा हे हमला जउन
हमर हसदेव बन उजाड़ ही।
धरती दाई के छाती कोड़ के
भीतर कोइला ल खंगालही ।