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  • हसदेव जंगल पर कविता

    हसदेव जंगल पर कविता

    हसदेव जंगल पर कविता

    hansdev ke jangal
    हसदेव जंगल


    हसदेव जंगल उजार के रोगहा मन
    पाप कमा के मरही।
    बाहिर के मनखे लान के
    मोर छत्तीसगढ़ म भरही।।

    कभु सौत बेटा अपन नी होवय,
    सब झन अइसन कइथे।
    सौत भल फेर सौत बेटा नही
    सौतिया डाह हर रइथे।।

    हसदेव जंगल दवई खदान
    सब जंगल ल उजाड़ही।
    बिन दवई बुटी के ,जन-जन ल रोगहा मन मार ही।।

    जंगल झाड़ी काट काट के
    कोयला खदान लगाही।
    ये रोगहा सरकार घलो हा
    परदेशिया मन ल बसाही।।

    का मुनाफा हे हमला जउन
    हमर हसदेव बन उजाड़ ही।
    धरती दाई के छाती कोड़ के
    भीतर कोइला ल खंगालही ।

  • सतनाम पर कविता



    सत के रद्दा बताये गुरू
    सही मारग दिखाये।
    सहीं मारग बतायें गुरू
    जय‌‌‌तखाम ल गड़ाये।।

    चंदा सुरूज ल चिनहाये
    गुरु,जोड़ा खाम ल गड़ाये
    विजय पताका ल फहराये
    साहेब, सतनाम ल बताये।।

    तोरे चरनकुंड के महिमा
    साहेब, जन-जन ल बताये।

    सादा के धजा बबा,
    सादा तिलक तोर माथे में।
    सादा के लुगरा पहिरे हवय
    सफुरा दाई साथ में।।

    मैं घोंडइया देवव बाबा,
    मैं पईंया लागव तोर।
    मोर दुःख ल हरदे बाबा
    निच्चट दासी हावव तोर।।

    संत के रद्दा धराये गूरू
    सही मारग दिखाये।
    मनखे मनखे एक समान
    जन जन ल बताये।।

    रचनाकार,, डॉ विजय कुमार कन्नौजे
    छत्तीसगढ़ रायपुर आरंग अमोदी

  • आत्म ज्ञान ही नया दिन

    जिस दिन जीवन खुशहाल रहे,
    जिस दिन आत्मा ज्ञान प्रकाश रहे,
    उस दिन दीवाली है।
    जिस दिन सेवा समर्पण भाव रहे,
    जिस दिन नवीन अविष्कार
    रहे
    नव वर्ष आने वाली हैं।
    जिस दिन घर घर पर दीप
    जले,
    जिस दिन पापियन निज हाथ मले
    उस दिन दीवाली है।
    नव वर्ष की खुशहाल त्योहार
    उस दिन हम मनायेंगे।
    जिस दिन भारत भुमि में नव दिन ज्योति जलायेंगे।।
    नया वर्ष मनायेंगे,
    नव दुर्गा नव रूप लेकर,, भक्तों का मन हर्षायेगे।।

    कौशल्या राज दुलारे हैं,
    दशरथ प्राण प्यारे हैं।
    पंच शतक बनवास काट,फिर अवध में राम पधारे हैं।।

  • चमचा गिरि नही करूंगा

    चमचा गिरि नही करूंगा


    जो लिखुंगा सत्य लिखुंगा
    चमचा गिरी नही करूंगा।
    कवि हूं कविता लिखुंगा
    राजनेता से नहीं बिकुंगा।।

    चापलुसी चमचा गिरी तो
    किसी कवि का धर्म नहीं।
    अत्याचार मै नहीं सहूंगा।
    जो लिखुंगा सत्य लिखुंगा ।

    राज नेता से नहीं बिकुंगा ।
    कवि हूं मैं, कविता लिखुंगा।।

    कवि धर्म कभी कहता नहीं
    अतिशयोक्ति काब्य लिखुंगा।
    जो सच्चाई है वहीं लिखुंगा।
    राजनेता से नहीं बिकुंगा।।

    चमचा गिरी नही करूंगा
    चाहे भले ही मर मिटुंगा।
    कवि हूं कविता लिखुंगा।
    राजनेता से नहीं बिकुंगा।।

    मैं भारत मां का पुत सपुत
    एक सनातनी कट्टर हिन्दू हूं।

    देश द्रोही सनातन विरोधी से
    जीवन पर्यन्त नहीं झुकुंगा।।
    चाहे प्राण भले जायें मेरा
    पर चमचा गिरि नही करूंगा।

    श्रीराम कृष्ण का अनुयायी है एक सनातनी कट्टर हिन्दू हूं।।
    वेद पुराण का पढ़ने वाला
    सत्य दया प्रेम क्षमा सिंद्धू हूं


    डॉ विजय कुमार कन्नौजे
    अमोदी आरंग ज़िला रायपुर
    छत्तीसगढ़

  • गंगा की पुकार

    गंगा की पुकार


    गंगा घलो रोवत हे,देख पापी अत्याचार।
    रिस्तेदारी नइये ठिकाना,बढ़गे ब्यभीचार।।

    कलयुग ऊपर दोष मढत हे,
    खुद करम में नहीं ठिकाना।
    कइसे करही का करही एमन
    ओ नरक बर करही रवाना।।

    स्वार्थ के डगर अब भारी होगे
    अनर्थ होत हे प्यार।
    प्यार अंदर अब नफरत हवय
    बढे हवय अत्याचार।।

    प्यार नाम अब धोखा हवे
    सुन लौ जी संत समाज।
    हृदय काकरो स्वच्छ नहीं
    जहर भरे हवय आज।।

    जहरीला हवय तन हा भाई
    मन हवय गंदा।
    कलयुगी पापी देख देख,
    रोवत हवे माई गंगा ।।

    लोगन कइथे सभ्य जमाना
    अनपढ़ रिहिस नादान।
    कवि विजय के कहना हवय
    अनपढ़ रिहिस भगवान।।

    नता गोता ला खुब मानय
    गांव बसेरू परिवार।
    सबके बेटी,सब कोई मानय
    हृदय बसाय सत्कार।।

    , डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर