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  • प्रकृति पर दोहे/रेखराम साहू

    प्रकृति पर दोहे/रेखराम साहू

    प्रकृतिजन्य जीवन सभी,रहे नित्य यह ज्ञान।
    घातक जो इनके लिए, त्याज्य सभी विज्ञान।।

    प्रकृति बिना जीवन नहीं,प्रकृति प्राण आधार।
    जीवन और प्रकृति बिना,धन-पद सब निस्सार।।

    जीवन पोषक हों सभी, धर्म-कर्म के कोष।
    धर्म-कर्म परखे बिना, दुर्लभ है संतोष।।

    देश-काल संदर्भ में, हितकारी व्यवहार।
    मानक धर्मों का यही,करे विश्व स्वीकार।।

    हर युग के इतिहास में, निहित ज्योति-अँधियार।
    नवयुग तम को त्याग कर,करे ज्योति संचार।।

    छाती पर बैठा रहा,काला अगर अतीत।
    कैसे फूटेगा भला,नव प्रकाश का गीत।।

    भूख सभी की एक सी,सब की प्यास समान।
    पीड़ा सब की एक सी, सबको प्यारी जान।।

    पशु बल से कब कौन है,सका शांति को साध।
    इससे बढ़ता ही गया, और अधिक अपराध।।

    लिखो चिट्ठियाँ प्रेम की,नव पीढ़ी के नाम।
    उजला-उजला दिन लिखो,शांतिदायिनी शाम।।

    *रेखराम साहू*