सत के रद्दा बताये गुरू
सही मारग दिखाये।
सहीं मारग बतायें गुरू
जयतखाम ल गड़ाये।।
चंदा सुरूज ल चिनहाये
गुरु,जोड़ा खाम ल गड़ाये
विजय पताका ल फहराये
साहेब, सतनाम ल बताये।।
तोरे चरनकुंड के महिमा
साहेब, जन-जन ल बताये।
सादा के धजा बबा,
सादा तिलक तोर माथे में।
सादा के लुगरा पहिरे हवय
सफुरा दाई साथ में।।
मैं घोंडइया देवव बाबा,
मैं पईंया लागव तोर।
मोर दुःख ल हरदे बाबा
निच्चट दासी हावव तोर।।
संत के रद्दा धराये गूरू
सही मारग दिखाये।
मनखे मनखे एक समान
जन जन ल बताये।।
रचनाकार,, डॉ विजय कुमार कन्नौजे
छत्तीसगढ़ रायपुर आरंग अमोदी