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  • शिवरात्रि पर कविता

    bhagwan Shiv
    शिव पर कविता

    शिवरात्रि पर कविता

    शिव को ध्याने के लिए लो आ गई रात्रि।
    मौका मिला है शिव की करने को चाकरी।

    शिव को मनाने के लिए बस श्रद्धा चाहिए।
    शिव को पाना जो चाहो तो नजरिया चाहिए।
    हो मुक्कमल सफ़र अपना और जाए यात्री।

    हम जन्म मरण से मुक्त हों और पाएं मोक्ष को।
    मंजिल कठिन हो चाहे पर अर्जुन सा लक्ष्य हो।
    शिव जी को पा लेना जैसे लग जाए लाटरी।

    हर कंकर है शंकर और हर पत्थर श्री राम है।
    गोपों के संग वृंदावन में रास रचाए राधेश्याम है।
    शिव को डमरू प्यारा है कान्हा को बांसुरी।

    अपनी जटाओं में गंगा को शिव ने धरा है।
    फिर विष को अपने कंठ में धारण किया है।
    हमको भी चरणों में धर लो हे भोले गंगाधरी।

    शिव को है प्यारा चिलम धतूरा और रुद्राक्ष,
    तप एकांत शंख बिल्व और प्यारा है कैलाश।
    भर दो भक्ति से हमारी खाली भिक्षा पात्री।

    रखें भरोसा भोले पर जो यहां तक ले आया है।
    आगे भी लेकर जाएगा जहां भी लेकर जाना है।
    सूर्य सा दो निखार हे भोले दिवाकरी।

    कर्ता करे न कर सके शिव करे सो होय,
    तीन लोक नौ खंड में तुझसे से बड़ा न कोय।
    आज हवा में सुर्खी लाई महाशिवरात्रि।

    *सुधीर कुमार*

  • शिव महिमा कविता

    bhagwan Shiv
    शिव पर कविता

    शिव महिमा कविता

    शिव शिवा शिव शिवा शिव शिवा ।
    शिव शव हैं……शिवा के सिवा।

    शिव अपूर्ण हैं शक्ति के बिना
    शक्ति कब पूर्ण हैं शिव के बिना
    अनुराग का सत इनका है वफ़ा।

    लोचन मोचन वि..मोचन सबल तुम हो
    कांति चमक दामिनी सकल तुम हो
    कायनात का कण तूने है रचा।

    वो अर्धनारी वो अर्धपुरुष हैं
    ऋषि मुनि के हर तो लक्ष्य हैं
    वो अर्चक का भाव सुनते हैं सदा।

    वो धरातल रसातल और फलक हैं।
    लालन पालन रक्षक सब के जनक हैं।
    लट जट जटा,जटी जूट वो हैं कुशा।

    जल नीर नाग हलाहल में तुम हो।
    गुल तरु फल प्राणी सुर
    तम में तुम हो।
    मन में संचित स्वाति बूंद है सुधा।

    एकाकी हैं…दो की दिव्य काया।
    ब्रह्म और भ्रम की है अलौकिक माया।
    सरल कपाल स्वयंभू से नहीं है जुदा।

    *_सुधीर कुमार*