यहां भारत छोड़ो आंदोलन पर एक कविता प्रस्तुत है:
भारत छोड़ो का जयघोष
सुनो कहानी वीरों की, जब भारत हुआ बेखौफ,
आजादी का बिगुल बजा, उठा स्वतंत्रता का शोर।
नव जागरण की लहर चली, एकता का उठा संकल्प ,
भारत छोड़ो का नारा गूंजा, देश की हुई कायाकल्प ।
अंग्रेजों की हुकूमत से, तंग हो गया था आमजन,
तोड़नी थी बेड़ी हमें , मंजूर नहीं शोषण और दमन।
गांधी के नेतृत्व में, आजादी का बिगुल बजा,
‘भारत छोड़ो’ का जयघोष, पूरे देश में गूंजा।
8 अगस्त का दिन आया, संघर्ष की नई आंधी लाई,
“अब अंग्रेजों, भारत छोड़ो!” हर कोने से बात गहराई
जन-जन में जगी थी ज्वाला, आजादी का अलख जगाया,
हर दिल में थी एक तमन्ना, एक नया साहस जुटाया ।
सत्याग्रह की शक्ति से, किया अन्याय का प्रतिकार,
गांधी, नेहरू, पटेल और सुभाष, सबने किया प्रहार ।
महिला और पुरुष सभी ने, बढ़ाया आंदोलन का रथ,
बालक-बालिकाओं ने भी, समझा अपना कर्तव्य पथ।
हर गांव, हर शहर ने देखी, आजादी की जंग,
भारत मां के खातिर सबने, सजाया लहू का रंग ।
आंदोलन की ज्वाला में, जले थे कितने सपने प्यारे,
न्योछावर हो गये आन्दोलन में, कई देशभक्त हमारे।
जेलों में डाले गए थे कई स्वतंत्रता सेनानी,
पर रुके नहीं कदम, बढ़ते रहे स्वाभिमानी।
देशभक्ति की अग्नि में, तपे थे उनके अरमान,
अंततः मिली विजय हमें, आजादी का नव विहान।
15 अगस्त 1947 को, फहराया तिरंगा गर्व से,
स्वतंत्रता का नव युग आया, भारत की जय से।
आज हम सब मिलकर गर्व करें, उन बलिदानों की शान में,
जिनके प्रयासों से मिला , स्वतंत्रता का यह वरदान हमें।
याद रखें उस हिम्मत को, जो ‘भारत छोड़ो’ में आई,
एकता की अद्भुत मिसाल, जिसने आजादी दिलाई।
भारत मां के वीर सपूतों को, नमन करें बारंबार,
जिनकी वजह से आज हम , स्वतंत्रता के हकदार।
मनीभाई नवरत्न
यह कविता भारत छोड़ो आंदोलन के संघर्ष और साहसिक प्रयासों को समर्पित है, जिसने देश को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया।