Tag: #आषीश कुमार

  • लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार

    लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार

    लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार

    लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार

    लोकतंत्र का पर्व पावन परम है
    मतदान हमारा पुनीत करम है
    बज चुका है चुनावी बिगुल
    पक्ष-विपक्ष सबका मामला गरम है

    कोई कट्टरपंथी चरम है
    कोई दिखाता खुद को नरम है
    टर्र टरा रहे चुनावी मेंढक
    हर जगह मामला गरम है

    किसी का सब कुछ सिर्फ धरम है
    कोई बूझे सिर्फ जात-पात का मरम है
    सब कुछ देख रहा बूढ़ा बरगद
    जिसकी छाया में मामला गरम है

    किसी नजर में परिवारवाद अधरम है
    किसी को व्यक्तिवाद पर आती शरम है
    विकास के रास्ते हैं सभी के पास
    पर पहुँचने की बात पर मामला गरम है

    फैलाते जनता में भरम हैं
    चुनावी वादे सारे बेशरम हैं
    मैं सही सब गलत के चक्कर में
    सारे झूठों का मामला गरम है

    गिनती नहीं कितनी तरह का कुकरम है
    किसी की जेब ढीली किसी की जेब गरम है
    सुबह होने का अब इंतजार किसे है
    आधी रात को ही यहाँ मामला गरम है

    आशीष कुमार
    उच्च माध्यमिक शिक्षक
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • दुर्गा मैया पर गीत – आषीश कुमार

    दुर्गा मैया पर गीत – आषीश कुमार

    दुर्गा मैया पर गीत


    तेरे रूप अनेक हैं मैया
    हर रूप में हमको भाती हो
    नवरात्रि में नौ दुर्गा रुप में
    हम पर ममता लुटाती हो

    तीनो लोक हैं काँपे तुमसे
    जब शक्ति रूप धरती हो
    चण्‍ड-मुण्‍ड और ऐसे कितने
    महिषासुर मर्दन करती हो

    तुम बनती हो लक्ष्मी माँ
    सारा संसार चलाती हो
    धन की वर्षा करती जब
    कुटिया भी महल बनाती हो

    जब बनती हो वीणापाणि
    ज्ञान का दीप जलाती हो
    हम जैसे भूले-भटकों को
    मंजिल तक पहुँचाती हो

    बन कर तुम अन्नपूर्णा माँ
    भूखों का पेट भरती हो
    पशु पक्षी और मानव जन में
    कोई भेद ना करती हो

    ममता का प्रतिशोध जब लेती
    कालरात्रि बन जाती हो
    थर थर काँपे देवता दानव
    रौद्र रूप दिखलाती हो

    उद्धार करना हो जब भक्तों का
    स्वर्ग छोड़ चली आती हो
    पतित पावनी हे माँ गंगे
    बैकुण्‍ठ भी पहुँचाती हो

    कोई परीक्षा लेवे मैया
    ज्वाला बनकर दिखलाती हो
    बादशाह भी नतमस्तक हो गए
    सोने को भी झूठलाती हो

    है कोई ढूँढता मंदिर मंदिर
    पहाड़ों पर भी मिल जाती हो
    सच्चे मन से कोई ढूँढे
    अंतर्मन में मिल जाती हो

    आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार