लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार
लोकतंत्र का पर्व पावन परम है
मतदान हमारा पुनीत करम है
बज चुका है चुनावी बिगुल
पक्ष-विपक्ष सबका मामला गरम है
कोई कट्टरपंथी चरम है
कोई दिखाता खुद को नरम है
टर्र टरा रहे चुनावी मेंढक
हर जगह मामला गरम है
किसी का सब कुछ सिर्फ धरम है
कोई बूझे सिर्फ जात-पात का मरम है
सब कुछ देख रहा बूढ़ा बरगद
जिसकी छाया में मामला गरम है
किसी नजर में परिवारवाद अधरम है
किसी को व्यक्तिवाद पर आती शरम है
विकास के रास्ते हैं सभी के पास
पर पहुँचने की बात पर मामला गरम है
फैलाते जनता में भरम हैं
चुनावी वादे सारे बेशरम हैं
मैं सही सब गलत के चक्कर में
सारे झूठों का मामला गरम है
गिनती नहीं कितनी तरह का कुकरम है
किसी की जेब ढीली किसी की जेब गरम है
सुबह होने का अब इंतजार किसे है
आधी रात को ही यहाँ मामला गरम है
आशीष कुमार
उच्च माध्यमिक शिक्षक
मोहनिया, कैमूर, बिहार