15 जून 2022 को साहित रा सिंणगार साहित्य ग्रुप के संरक्षक बाबूलाल शर्मा ‘विज्ञ’ और संचालक व समीक्षक गोपाल सौम्य सरल द्वारा ” भोजन ” विषय पर दोहा छंद कविता आमंत्रित किया गया जिसमें से भोजन पर बेहतरीन दोहे चयनित किया गया। जो कि इस प्रकार हैं-
भोजन पर दोहे का संकलन
मदन सिंह शेखावत के दोहे
सादा भोजन कर सदा, करे परहेज तेल।
पेट रहे आराम तो , होता सुखमय मेल।।
तेल नमक शक्कर सदा,करना न्यून प्रयोग।
रहे बिमारी दूर सब , सुखद बने संयोग।।
भोजन में खिचड़ी रखे, खाकर हो आनंद।
अच्छा रहता है उदर , होता परमानंद।।
भोजन करना अल्प है , हो शरीर अनुसार।
दीर्घ आयु होगा मनुज , पाता है आधार।।
खट्टा मीठ्ठा जस मिले , समझे प्रभो प्रसाद।
रुच रुच कर खाना सभी,मिट जाये अवसाद।।
मदन सिंह शेखावत ढोढसर
राधा तिवारी ‘राधेगोपाल’ के दोहे
भोजन सब करते रहो, दूर रहेंगे रोग।
भोजन से ताकत मिले, कहते हैं कुछ लोग।।
भोजन निर्धन को मिला, नहीं कभी भरपेट ।
उसके बच्चे ताकते, सदा पड़ोसी गेट।।
भोजन के तो सामने, फीके सब पकवान।
भोजन के तो साथ में, मत करना जलपान।।
भजन करें कैसे यहाँ, बिन भोजन के मीत।
भरे पेट तब हो भजन, यह है जग की रीत।।
हल्का भोजन ही रखे, हमको यहाँ निरोग।
तेलिय भोजन का नहीं, करना अब उपयोग।।
रोटी चावल लीजिए, भोजन में मनमीत।
फल सब्जी अरु दाल से, करलो ‘राधे’ प्रीत।।
राधा तिवारी ‘राधेगोपाल’
अंग्रेजी एलटी अध्यापिका
खटीमा, उधम सिंह नगर
(उत्तराखंड)
बृजमोहन गौड़ के दोहे
जीने को खाना सखे, खाने को मत जीव l
देर रात भोजन नहीं,तगड़ी जीवन नीव ll
कम खाना अच्छा सदा,काया रहे निरोग l
कर लो कुछ व्यायाम भी,और प्रात में योग ll
पाचक और सुपथ्य कर,मांसाहारी त्याग l
खान-पान को ही बने,खेत बगीचे बाग ll
@ बृजमोहन गौड़
अनिल कसेर “उजाला” के दोहे
भोजन से जीवन चले, रहता स्वथ्य शरीर।
सादा भोजन जो करें, भागे तन से पीर।
भोजन हल्का ही करें, दूर रहे सब रोग।
समय रहत भोजन करें, और करें जी योग।
कोई भूखा मत रहे, करो अन्न का दान।
जो उपजाता अन्न है, दे उनको सम्मान।
अनिल कसेर “उजाला”
केवरा यदु मीरा के दोहे
सदा करेला खाइये, दूर रहे फिर रोग।
शुगर रोग होवे नहीं,कहते डाक्टर लोग।।
सादा भोजन जो करे,रहते सदा निरोग।
भोजन बिन कब कर सके, योगासन या योग।।
भोजन के ही बाद में, कहते पीजे नीर।
घंटे भर के बाद पी,तन से भागे पीर।।
भोजन संग सलाद हो,ककड़ी मूली मान।
हरी सब्जियाँ लीजिए,देख परख पहचान।।
भाजी में गुण है बहुत,पालक बथुआ साग।
मिले विटामिन सी सुनो, रोग जाय फिर भाग।।
केवरा यदु मीरा
गोपाल सौम्य सरल के दोहे
काया अपनी यंत्र है, चाहे यह आहार।
भोज कीजिए पथ्य तुम, सुबह शाम दो बार।।
भोजन से तन मन चले, ऊर्जा मिले अपार।
खान-पान दो खंभ है, हरदम करो विचार।।
तन को भोजन चाहिए, मन को भले विचार।
खान-पान अच्छा करो, रहते दूर विकार।।
बैठ पालथी मारके, रख आसन लो भोज।
शांत चित्त के खान से, सँवरे मुख पाथोज।।
ग्रास चबाकर खाइए, बने तरल हर बार।
रस भोजन का तन लगे, आये बहुत निखार।।
नमक मिर्च अरु तेल सब, खाओ कर परहेज।
तेज लिये से रोग हो, मुख हो फिर निस्तेज।।
दूध दही लो भोज में, ऋतु फल भरें समीच।
कर अति का परहेज सब, उदय अस्त रवि बीच।।
खट्टा मीठा चटपटा, सभी बढ़ाएं भोग।
उचित करो उपयोग सब, काया रहे निरोग।।
सुबह करो रसपान तुम, ऋतु फल उत्तम जान।
दूध पीजिए रात को, जाये उतर थकान।।
सात दिवस में एक दिन, रखो सभी उपवास।
सुधरे पाचन तंत्र जब, बीते हर दिन खास।।
नींद जरूरी भोज है, तन चाहे विश्राम।
स्वस्थ रहे फिर मन बड़ा, अच्छे होते काम।।
भोज प्रसादी ईश की, देती सबको जान।
रूखी सूखी जो मिले, लो प्रभु करुणा मान।।
शब्दार्थ-
पाथोज- कमल
समीच- जल निधि/ यहाँ ‘रस युक्त’
गोपाल ‘सौम्य सरल’
पुष्पा शर्मा कुसुम के दोहे
आवश्यक तन के लिए,भोजन उचित प्रबंध।
पोषण सह बल भी बढ़े, जीवन का अनुबंध।।
सात्विक भोजन कीजिए, बने स्वास्थ्य सम्मान।
तजिए राजस तामसी, है रोगों की खान।।
भोजन माता हाथ का,रहे अमिय रसपूर।
मिले तृप्ति शीतल हृदय,ममता से भरपूर।।
भूख स्नेह कारण बने, भोजन करना साथ।
हो अभाव जो स्नेह का,नहीं बढ़ायें हाथ।।
अन्न, वस्त्र, जल दान से, मिलता है परितोष।
भूखे को भोजन दिये, मन पाता संतोष।।
पुष्पा शर्मा ‘कुसुम’
डॉ एन के सेठी के दोहे
सात्विकभोजन कीजिए,मन हो सदा प्रसन्न।
चित्त सदा ऐसा रहे, जैसा खाओ अन्न।।
भोजन मन से ही करें, बढ़े भोज का स्वाद।
तन मन दोनों स्वस्थ हों, रहे नहीं अवसाद।।
चबा चबा कर खाइए, भोजन का ले स्वाद।
तभी भोज तन को लगे, होय नहीं बर्बाद।।
भोजन उतना लीजिए, जिससे भरता पेट।
झूठा अन्न न छोड़िए, यह ईश्वर की भेंट।।
भोजन की निंदा कभी,करे न मुख से बोल।
षडरस काआनंद ले,हो प्रसन्न दिल खोल।।
© डॉ एन के सेठी
डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव मंजुल के दोहे
भोजन तब रुचिकर लगे,बने प्रेम से रोज।
भावों की मधु चाशनी, नित्य नवल हो खोज।।
मैदा शक्कर अरु नमक , सेवन दे नुकसान।
गुड़ आटा फल सब्जियाँ, खा कर हों बलवान।।
सर्वोत्तम भोजन वही,माँ का जिसमें प्यार।
कभी न मन से छूटता ,अद्भुत स्वाद दुलार।।
चटनी की चटकार से ,बढ़े भोज का स्वाद।
आम आँवला जाम हर, चटनी रहती याद।।
मूँग चना अरु मोठ को ,रखिये रोज भिगाँय।
करें अंकुरित साथ गुड़ , प्रात:खा बल पाँय।।
डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव मंजुल