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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ०बाबू लाल शर्मा बौहरा के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

हारे जीत पर दोहे

हारे जीत पर दोहे पीर जलाए आज विरह फिर,बनती रीत!लम्बी विकट रात बिन नींदे, पुरवा शीत! लगता जैसे बीत गया युग, प्यार किये!जीर्ण वसन हो बटन टूटते, कौन सिँए!मिलन नहीं भूले से अब तो, बिछुड़े मीत!पीर जलाए आज विरह फिर,…

प्रीत की बाजी पर कविता

प्रीत की बाजी पर कविता कल्पना यह कल्पना है,आपके बिन सब अधूरी।गया भूल भी मधुशाला,वह गुलाबी मद सरूरी। सो रही है भोर अब यह,जागरण हर यामिनी को।प्रीत की ठग रीत बदली,ठग रही है स्वामिनी को।दोष देना दोष है अब,प्रीत की…

कुण्डलिया शतकवीर- बाबूलाल शर्मा

कुण्डलिया शतकवीर – बाबूलाल शर्मा १. *वेणी* मिलती संगम में सरित, कहें त्रिवेणी धाम!तीन भाग कर गूँथ लें, कुंतल वेणी बाम!कुंतल वेणी बाम, सजाए नारि सयानी!नागिन सी लहराय, देख मन चले जवानी!कहे लाल कविराय, नारि इठलाती चलती!कटि पर वेणी साज,…

मातृ पितृ पूजन दिवस पर कविता

मातृ पितृ पूजन दिवस पर कविता दिवस मातृ पितु ले मना, करिये सत संकल्प।ईश मान पितु मात को, छोड़ो सभी विकल्प।। घर में ही भगवान हैं, सच जीवन दातार।मात पिता को मान दें, करिये उनसे प्यार।। जन्म दिया है आपको,…

सरस्वती माँ पर कविता-बाबू लाल शर्मा बौहरा

सरस्वती माँ पर कविता शारदे आप ही आओ।कंठ मेरे तुम्ही गाओ।शान बेटी सयानी के।बात किस्से गुमानी के। धाय पन्ना बनी माता।मान मेवाड है पाता।पद्मिनी की कहानी है।साहसी जो रुहानी है। बात झाँसी महारानी।शीश हाड़ी दिए मानी।वीर ले जा निशानी है।बात…

चितवन पर कविता

चितवन पर कविता चंचल चर चितवन चषक, चण्डी,चुम्बक चाप्!चपला चूषक चप चिलम,चित्त चुभन चुपचाप!चित्त चुभन चुपचाप, चाह चंडक चतुराई!चमन चहकते चंद, चतुर्दिश चष चमचाई!चाबुक चण्ड चरित्र, चाल चतुरानन चल चल!चारु चमकमय चित्र, चुनें चॅम चंदन चंचल! *चंडक~चंद्र, चॅम~मित्र, चष~दृश्य शक्ति,…

फरवरी माह पर दोहे

फरवरी माह पर दोहे माह फरवरी शीत में, पछुआ मंद बयार।बासंती मौसम हुआ, करे मधुप गुंजार।। माह फरवरी जन्म का, वेलेन्टाइन संत।प्रेम पगा संसार हो, प्रीत रीत का पंत।। भारत में उत्सव मनें, फाग बसन्ती गीत।माह फरवरी में चले, प्राकृत…

पिता पर कविता~बाबूलाल शर्मा

पिता पर कविता-बूलालशर्मा पिता ईश सम हैं दातारी। कहते कभी नहीं लाचारी। देना ही बस धर्म पिता का। आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१ तरु बरगद सम छाँया देता। शीत घाम सब ही हर लेता! बहा पसीना तन जर्जर कर। जीता मरता…

स्वदेश पर कविता-बाबूलालशर्मा

स्वदेश पर कविता करें जय गान!शहादत शान!सुवीर जवान!स्वदेश महान! करें गुण गान!सुधीर किसान!पढ़े इतिहास!बचे निज त्रास! धरा निज मात!प्रणाम प्रभात!पिता भगवान!सदा सत मान! रहे यश गान!स्वदेश महान!प्रवीर जवान!सुधीर किसान! ✍©बाबू लाल शर्मा, बौहरासिकंदरा,दौसा,राजस्थान Post Views: 44

मनोरम छंद विधान- बाबूलाल शर्मा

मनोरम छंद विधान मापनी – २१२२ २१२२ चार चरण का छंद है दो दो चरण सम तुकांत हो चरणांत में ,२२,या २११ हो चरणारंभ गुरु से अनिवार्य है ३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य मापनी – २१२२, २१२२ कल काल से संग्राम…