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गोपालदास नीरज (4 जनवरी 1925 – 19 जुलाई 2018), हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, एवं कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं फ़िल्मों के गीत लेखक थे। वे पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।

  • मुस्कुराकर चल मुसाफिर / गोपालदास “नीरज”

    मुस्कुराकर चल मुसाफिर / गोपालदास “नीरज”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर!

    वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पथ के थका दें?
    हौसला वह क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें?
    वह प्रगति भी क्या जिसे कुछ रंगिनी कलियाँ तितलियाँ,
    मुस्कुराकर गुनगुनाकर ध्येय-पथ, मंजिल भुला दें?
    जिन्दगी की राह पर केवल वही पंथी सफल है,
    आँधियों में, बिजलियों में जो रहे अविचल मुसाफिर!
    पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

    जानता जब तू कि कुछ भी हो तुझे ब़ढ़ना पड़ेगा,
    आँधियों से ही न खुद से भी तुझे लड़ना पड़ेगा,
    सामने जब तक पड़ा कर्र्तव्य-पथ तब तक मनुज ओ!
    मौत भी आए अगर तो मौत से भिड़ना पड़ेगा,
    है अधिक अच्छा यही फिर ग्रंथ पर चल मुस्कुराता,
    मुस्कुराती जाए जिससे जिन्दगी असफल मुसाफिर!
    पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर।

    याद रख जो आँधियों के सामने भी मुस्कुराते,
    वे समय के पंथ पर पदचिह्न अपने छोड़ जाते,
    चिन्ह वे जिनको न धो सकते प्रलय-तूफान घन भी,
    मूक रह कर जो सदा भूले हुओं को पथ बताते,
    किन्तु जो कुछ मुश्किलें ही देख पीछे लौट पड़ते,
    जिन्दगी उनकी उन्हें भी भार ही केवल मुसाफिर!
    पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

    कंटकित यह पंथ भी हो जायगा आसान क्षण में,
    पाँव की पीड़ा क्षणिक यदि तू करे अनुभव न मन में,
    सृष्टि सुख-दुख क्या हृदय की भावना के रूप हैं दो,
    भावना की ही प्रतिध्वनि गूँजती भू, दिशि, गगन में,
    एक ऊपर भावना से भी मगर है शक्ति कोई,
    भावना भी सामने जिसके विवश व्याकुल मुसाफिर!
    पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

    देख सर पर ही गरजते हैं प्रलय के काल-बादल,
    व्याल बन फुफारता है सृष्टि का हरिताभ अंचल,
    कंटकों ने छेदकर है कर दिया जर्जर सकल तन,
    किन्तु फिर भी डाल पर मुसका रहा वह फूल प्रतिफल,
    एक तू है देखकर कुछ शूल ही पथ पर अभी से,
    है लुटा बैठा हृदय का धैर्य, साहस बल मुसाफिर!
    पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

  • जीवन नहीं मरा करता है – गोपाल दास नीरज

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    जीवन नहीं मरा करता है-गोपाल दास नीरज

    छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
    कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

    सपना क्या है, नयन सेज पर
    सोया हुआ आँख का पानी
    और टूटना है उसका ज्यों
    जागे कच्ची नींद जवानी
    गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
    कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

    माला बिखर गयी तो क्या है
    खुद ही हल हो गयी समस्या
    आँसू गर नीलाम हुए तो
    समझो पूरी हुई तपस्या
    रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
    कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

    खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
    केवल जिल्द बदलती पोथी
    जैसे रात उतार चांदनी
    पहने सुबह धूप की धोती
    वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
    चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

    लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
    शिकन न आई पनघट पर,
    लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
    चहल-पहल वो ही है तट पर,
    तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
    लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

    लूट लिया माली ने उपवन,
    लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
    तूफानों तक ने छेड़ा पर,
    खिड़की बन्द न हुई धूल की,
    नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
    कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!

  • मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ / गोपालदास “नीरज”

    मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ / गोपालदास “नीरज”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की
    हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?

    मीलों जहाँ न पता खुशी का
    मैं उस आँगन का इकलौता,
    तुम उस घर की कली जहाँ नित
    होंठ करें गीतों का न्योता,
    मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
    मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
    मैं पीड़ा का…

    मेरा कुर्ता सिला दुखों ने
    बदनामी ने काज निकाले
    तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
    नभ ने सब तारे जड़ डाले
    मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
    मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
    मैं पीड़ा का…

    मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी
    उम्र आँसुओं की बढ़ जाए
    तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
    रोज़ नए कंगन जड़वाए,
    तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
    जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?
    मैं पीड़ा का…

    इतना दानी नहीं समय जो
    हर गमले में फूल खिला दे,
    इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
    हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
    मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
    जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?
    मैं पीड़ा का…

  • हार न अपनी मानूँगा मैं ! / गोपालदास “नीरज”

    हार न अपनी मानूँगा मैं ! / गोपालदास “नीरज”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हार न अपनी मानूँगा मैं !

    चाहे पथ में शूल बिछाओ
    चाहे ज्वालामुखी बसाओ,
    किन्तु मुझे जब जाना ही है —
    तलवारों की धारों पर भी, हँस कर पैर बढ़ा लूँगा मैं !

    मन में मरू-सी प्यास जगाओ,
    रस की बूँद नहीं बरसाओ,
    किन्तु मुझे जब जीना ही है —
    मसल-मसल कर उर के छाले, अपनी प्यास बुझा लूँगा मैं !

    हार न अपनी मानूंगा मैं !

    चाहे चिर गायन सो जाए,
    और ह्रदय मुरदा हो जाए,
    किन्तु मुझे अब जीना ही है —
    बैठ चिता की छाती पर भी, मादक गीत सुना लूँगा मैं !

    हार न अपनी मानूंगा मैं !

  • खिलते हैं गुल यहाँ / गोपालदास “नीरज”

    खिलते हैं गुल यहाँ / गोपालदास “नीरज”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    खिलते हैं गुल यहाँ, खिलके बिखरने को
    मिलते हैं दिल यहाँ, मिलके बिछड़ने को
    खिलते हैं गुल यहाँ…

    कल रहे ना रहे, मौसम ये प्यार का
    कल रुके न रुके, डोला बहार का
    चार पल मिले जो आज, प्यार में गुज़ार दे
    खिलते हैं गुल यहाँ…

    झीलों के होंठों पर, मेघों का राग है
    फूलों के सीने में, ठंडी ठंडी आग है
    दिल के आइने में तू, ये समा उतार दे
    खिलते हैं गुल यहाँ…

    प्यासा है दिल सनम, प्यासी ये रात है
    होंठों मे दबी दबी, कोई मीठी बात है
    इन लम्हों पे आज तू, हर खुशी निसार दे
    खिलते हैं गुल यहाँ …