शब्द तुम मीत बनो
शब्द मेरे मन मीत बनो ,
जीवन का संगीत बनो,
हर मुश्किल हालातों में ,
मेरी अपनी जीत बनो।
नित्य तुम्हारी साधना,
करती रहूँ आराधना।
कर देना मनमुदित मुझे ,
व्यवहारिक नवनीत बनो।
सदा सहयोग तुम्हारा ,
हृदय प्रफुल्लित हमारा।
अभिव्यक्ति अनमोल बने,
प्रणय के मेरे गीत बनो।
सहज धारा भावों की हो,
फिर लेखन में समृद्धि हो।
दुनिया भर का सुख तुमसे,
मेरे सुर – संगीत बनो।
संकोच नहीं तुमसे कभी,
तुम मन के उद्गार सभी।
मुखरित रहो सदा मुख से ,
मन की प्यारी प्रीत बनो।
तुम मेरी परिचय-रेखा ,
बाकी कर्म है अनदेखा।
जीवन भर साथ हमारा ,
तुम सुखमय अतीत बनो।
शब्द शब्द तुम कली बनो,
और निखरकर सुमन बनो।
माँ सरस्वती की हो कृपा ,
तुम कविता की रीत बनो।
मधुसिंघी
नागपुर(महाराष्ट्र)