Tag: Hindi poem on Magh

माघ शुक्ल की पंचमी : माघ शुक्ल पंचमी भारतीय पंचांग के अनुसार ग्यारहवें माह की पाँचवी तिथि है, वर्षान्त में अभी ५५ तिथियाँ अवशिष्ट हैं।

  • शब्द तुम मीत बनो

    शब्द तुम मीत बनो

    शब्द मेरे मन मीत बनो ,
    जीवन का संगीत बनो,
    हर मुश्किल हालातों में ,
    मेरी अपनी जीत बनो।

    नित्य तुम्हारी साधना,
    करती रहूँ आराधना।
    कर देना मनमुदित मुझे ,
    व्यवहारिक नवनीत बनो।

    सदा सहयोग तुम्हारा ,
    हृदय प्रफुल्लित हमारा।
    अभिव्यक्ति अनमोल बने,
    प्रणय के मेरे गीत बनो।

    सहज धारा भावों की हो,
    फिर लेखन में समृद्धि हो।
    दुनिया भर का सुख तुमसे,
    मेरे सुर – संगीत बनो।

    संकोच नहीं तुमसे कभी,
    तुम मन के उद्गार सभी।
    मुखरित रहो सदा मुख से ,
    मन की प्यारी प्रीत बनो।

    तुम मेरी परिचय-रेखा ,
    बाकी कर्म है अनदेखा।
    जीवन भर साथ हमारा ,
    तुम सुखमय अतीत बनो।

    शब्द शब्द तुम कली बनो,
    और निखरकर सुमन बनो।
    माँ सरस्वती की हो कृपा ,
    तुम कविता की रीत बनो।

    मधुसिंघी
    नागपुर(महाराष्ट्र)

  • वीणा वादिनी नमन आपको प्रणाम है

    वीणा वादिनी नमन आपको प्रणाम है

    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami
    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami

    शब्द-शब्द दीप की, अखंड जोत आरती |

    प्रकाश पुंज से प्रकाशवान होती भारती |

    खंड-खंड में प्रचंड, दीप्ति विघमान है |

    वीणा वादिनी नमन, आपको प्रणाम है |

    साधकों की साधना में,

    एकता के स्वर सजे,

    आपकी आराधना में,

    साज संग मृदंग बजे |

    कोटि-कोटि वंदनाएं, आपके ही नाम हैं |

    वीणावादिनी नमन, आपको प्रणाम है |

    नेक काज कर सके,

    हमको ऐसी बुद्धि दो,

    छल कपट से हो परे,

    आत्मा में शुद्धि दो |

    सत्य की डगर में माना, मुश्किलें तमाम हैं |

    वीणावादिनी नमन, आपको प्रणाम है |

    बुराइयों से हों परे,

    नेकियों का साथ हो,

    मेरे शीश पर सदा,

    आपका ही हाथ हो |

    भोर थी विभोर सी, अब सुहानी शाम है |

    वीणावादिनी नमन, आपको प्रणाम है |

    सद्भाव की डगर चलें,

    समग्रता सुलभ मिले,

    रहे ज़मीन पर क़दम,

    चाहें सारा नभ मिले |

    उपासना में आपकी, सत्य का ही नाम है |

    वीणावादिनी नमन, आपको प्रणाम है |
    उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश

  • ऋतुराज बसंत- शची श्रीवास्तव

    ऋतुराज बसंत- शची श्रीवास्तव


    पग धरे धीर मंथर गति से
    ये प्रकृति सुंदरी मदमाती,
    ऋतुराज में नवयौवन पाकर
    लावण्य रूप पर इतराती।

    ज्यों कोई नवोढ़ा धरे कदम
    दहलीज पर नए यौवन की,
    यूं धीरे धीरे तेज़ होती है
    धूप नए बसंत ऋतु की।

    पीली सरसों करती श्रृंगार
    प्रकृति का यूं बसंत ऋतु में,
    अल्हड़ सी ज्यूं कोई बाला
    सज धज बैठी अपनी रौ में।

    अमराई से महक उठी हैं
    तरुण आम की मंजरियां,
    कैसे कूके मीठी कोयल
    बिखराती संगीत लहरियां।

    भौरे ने छेड़ा मधुर गीत
    सुना जब आया है मधुमास,
    पुहुप सब रहे झूम हो मस्त
    छेड़ प्रेम का अमिट रास।

    प्रेयसी मगन मन में बसंत
    छाए मधु रस ज्यों रग रग पर,
    अभिसार की चाह जगाए रुत
    ऐसे में करो न गमन प्रियवर।।

    ऋतुराज बसंत- शची श्रीवास्तव

  • ऋतुराज बसंत पर दोहे

    ऋतुराज बसंत पर दोहे

    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami
    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami

    धरती दुल्हन सी सजी,आया है ऋतुराज।
    पीली सरसों खेत में,हो बसंत आगाज।।1।।


    कोकिल मीठा गा रही,भांतिभांति के राग।
    फूट रही नव कोंपलें , हरे भरे हैं बाग।।2।।


    पीली चादर ओढ़ के, लगती धरा अनूप।
    प्यारा लगे बसंत में, कुदरत का ये रूप।।3।।


    हरियाली हर ओर है , लगे आम में बौर।
    हुआ शीतअवसान है,ऋतु बसंत का दौर।।4।।
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    फैल रहा चहुँ और है, बिखरा पुष्प पराग।
    निर्मल जल से पूर्ण हैं,नदियाँ ताल तड़ाग।।5।।


    प्रकट हुई माँ शारदे,ऋतु बसंत के काल।
    वीणापुस्तकधारिणी, वाहन रखे मराल।।6।।


    फूल फूल पर बैठता,भ्रमर करे गुंजार।
    फूलों से रस चूसता,सृजन करे रस सार।।7।।


    कुदरत ने खोला यहाँ, रंगों का भंडार।
    अद्भुत प्रकृति की छटा,फूलों काश्रृंगार।।8।।


    सुंदर लगे वसुंधरा, महके हर इक छोर।
    दृश्य सुनहरा सा लगे,ऋतु बसंत मेंभोर।।9।।


    नया नया लगने लगा,कुदरत का हर रूप।
    ऋतु बसंत के काल मे,लगे सुहानी धूप।।10।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • बसंत पंचमी पर कविता

    बसंत पंचमी पर कविता

    मदमस्त    चमन

    अलमस्त  पवन

    मिल रहे  हैं देखो,

    पाकर  सूनापन।

    उड़ता है सौरभ,

    बिखरता पराग।

    रंग बिरंगा सजे

    मनहर ये बाग।

    लोभी ये मधुकर

    फूलों पे है नजर

    गीला कर चाहता

    निज शुष्क अधर।

    सजती है धरती

    निर्मल है आकाश।

    पंछी का कलरव,

    अब बसंत पास।