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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०नरेन्द्र कुमार कुलमित्रके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

पुराने दोस्त पर कविता

पुराने दोस्त पर कविता हम दो पुराने दोस्तअलग होने से पहलेकिए थे वादेमिलेंगे जरूर एक दिन लंबे अंतराल बादमिले भी एक दिन उसने देखा मुझेमैंने देखा उसेऔर अनदेखे ही चले गए उसने सोचा मैं बोलूंगामैंने सोचा वह बोलेगाऔर अनबोले ही चले…

मिलकर पुकारें आओ -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

मिलकर पुकारें आओ ! फिर मिलकर पुकारें आओगांधी, टालस्टाय और नेल्सन मंडेलाया भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और सुभाष चन्द्र बोस कीदिवंगत आत्माओं कोताकि हमारी चीखें सुन उनकी आत्माएंहमारे बेज़ान जिस्म में समाकर जान फूंक देताकि गूंजे फिर कोई आवाजें जिस्म…

हम तो उनके बयानों में रहे -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

हम तो उनके बयानों में रहे हम जब तक रहे बंद मकानों में रहे।वे कहते हैं हम उनके ज़बानों में रहे।1। उनके लिए बस बाज़ार है ये दुनियाँगिनती हमारी उनके सामानों में रहे।2। मुफ़लिसी हमारी तो गई नहीं मगरहमारी अमीरी…

जिंदगी पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

जिंदगी पर कविता आज सुबह-सुबहमित्र से बात हुईउसने हमारेभलीभांति एक परिचित कीआत्महत्या की बात बताईमन खिन्न हो गया जिंदगी के प्रतिक्षणिक बेरुखी-सी छा गईसुपरिचित दिवंगत का चेहराउसके शरीर की आकृतिहाव-भावमन की आँखों में तैरने लगा किसी को जिंदगी कम लगती…

जन्म लेती है कविता- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

जन्म लेती है कविता-  सूरज-सा चिरती निगाहेंसंवेदनाओं से भरी दूरदर्शी निगाहेंअहर्निश हर पलघूमती रहती है चारों ओर दृश्यमान जगत केदृश्य-भाव अनेकसुंदर-कुरूप,अच्छे-बुरे,अमीरी-गरीबी, और भी रंग सारे भावों की आत्माशब्दों की देह धरकरजन्म लेती है कविता। — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र     9755852479कविता…

पंछी की पुकार नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

पंछी की पुकार एक दिनसुबह-सुबहडरा-सहमा छटपटाता चिचिआता हुआ एक पंछीखुले आसमान सेमेरे घर के आंगन में आ गिरा मैंने उसे सहलायापुचकारा-बहलायादवाई दी-खाना दियाकुछेक दिन में चंगा हो गया वह आसमान की ओर इशारा करते हुएमैंने उसे छोड़ना चाहावह पंछीअपने पंजों से कसकरमुझे…

शांति पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

शांति पर कविता  हम कैसे लोग हैंकहते हैं—हमें ये नहीं करना चाहिएऔर वही करते हैंवही करने के लिए सोचते हैंआने वाली हमारी पीढियां भीवही करने के लिए ख़्वाहिशमंद रहती हैजैसे नशाजैसे झूठजैसे अश्लील विचार और सेक्सजैसे ईर्ष्या-द्वेषजैसे युद्ध और हत्याएंऐसे…

वक़्त से मैंने पूछा-नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

वक़्त से मैंने पूछा      वक़्त से मैंने पूछाक्या थोड़ी देर तुम रुकोगे ?वक़्त ने मुस्करायाऔरप्रतिप्रश्न करते हुएक्या तुम मेरे साथ चलोगे?आगे बढ़ गया…। वक़्त रुकने के लिए विवश नहीं थाचलना उसकी आदत में रहा है सो वह चला गयातमाम विवशताओं…

तुम नहीं होती तब – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

तुम नहीं होती तब चादर के सलवटों मेंबेतरतीब बिखरे कपड़ों मेंउलटे पड़े जूतों मेंकेले और मूंगफली के छिलकों मेंलिखे,अधलिखे और अलिखे मुड़े-तुड़े कागज़ के टुकडों में खुद बिखरा-बिखरा-सा पड़ा होता हूँ मेरे सिरहाने के इर्द-गिर्दएक के बाद एक डायरी,दैनिक अख़बारों,पत्रिकाओं,कविताओं, गजलोंऔर कहानियों की कई…

पिता होने की जिम्मेदारी – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

पिता होने की जिम्मेदारी दो बच्चों का पिता हूँ मेरे बच्चे अक्सर रात मेंओढ़ाए हुए चादर फेंक देते हैओढ़ाता हूँ फिर-फिरवे फिर-फिर फेंकते जाते हैं उन्हें ओढ़ाए बिना… मानता ही नहीं मेरा मन वे होते है गहरी नींद मेंउनके लिए अक्सर…