साहित रा सिँणगार १०० के सौजन्य से 17 जून 2022 शुक्रवार को पटल पर संपादक आ. मदनसिंह शेखावत जी के द्वारा विषय- भाई पर कुण्डलिया में रचना आमंत्रित किया गया.
कुंडलियां विधान-
एक दोहा + एक रोला छंद
दोहा -विषम चरण १३ मात्रा चरणांत २१२
सम चरण ११ मात्रा चरणांत २१
समचरण सम तुकांत हो
रोला – विषम चरण – ११ मात्रा चरणांत २१
सम चरण – १३ मात्रा चरणांत २२
बहिन पर कुंडलियां
चंदा है आकाश में, धरती इतनी दूर।
बहिन बंधु का नेह शुभ, निभे रीति भरपूर।
निभे रीति भरपूर, नहीं तुम बहिन अकेली।
भावों का संचार, समझना कठिन पहेली।
नित उठ करते याद, नेह फिर क्यों हो मंदा।
रखो धरा सम धीर, बंधु चाहे मन चंदा।
बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
भाई पर कुण्डलिया छंद
मदन सिंह शेखावत ढोढसर के कुण्डलिया
भाई हो तो भरत सा,दिया राज सब त्याग।
उदासीन रहकर सदा , राम चरण अनुराग।
राम चरण अनुराग , वेदना मन में भारी।
देता खुद को दोष , कैकयी की तैयारी।
कहे मदन कर जोर , शत्रु बन माता आई।
मन मे अति है रोष , भरत से हो सब भाई।।
भाई भाई प्रेम हो , रहे न कुछ तकरार।
जान छिड़कते है सदा , बेशुमार है प्यार।
बेशुमार है प्यार , सदा मिलकर है रहते।
करे समस्या दूर ,वचन कटु कभी न कहते।
कहे मदन कर जोर , करे घाटा भरपाई।
रहे सदा ही त्याग , प्रेम हो भाई भाई।।
भाई अब दुश्मन बना , चले फरेबी चाल।
आया ऐसा दौर है , हर घर है बेहाल।
हर घर है बेहाल , नहीं आपस में बनती।
करते है तकरार , तुच्छ बाते हो सकती।
आया समय खराब , रूष्ट होती है माई।
मिलकर करना काम ,नही बन दुश्मन भाई।।
मदन सिंह शेखावत ढोढसर
पुष्पा शर्मा”कुसुम” के कुण्डलिया
भाई -भाई मिल रहें, आपस में हो प्यार।
दुख -सुख में साथी रहें,यह अपना परिवार।
यह अपना परिवार,साथ जीवन में देता।
मने पर्व त्योहार,खुशी दामन भर लेता।
बगिया रहे बहार ,कुसुम कलियाँ मुस्काई।
हिम्मत होती साथ, जहाँ मिल रहते भाई।।
पुष्पा शर्मा ‘कुसुम’
बृजमोहन गौड़ के कुण्डलिया
भाई भाई में कहाँ,पहले जैसा प्यार ।
रिश्ते सारे कट गए,तलवारों की धार ।
तलवारों की धार,हुआ बटवारा भारी ।
बटे खेत खलिहान,बटे बापू महतारी ।
बृज कैसी यह राह,लाज खुद रही लजाई ।
बचे कहाँ अब राम, और लक्ष्मण से भाई ।।
@ बृजमोहन गौड़
डॉ एन के सेठी राजस्थान के कुण्डलियां
भाई भरत समान हो,त्याग दिए सुख चैन।
भ्रात राम की भक्ति में, लगे रहे दिन रैन।।
लगे रहे दिन रैन, त्याग का पाठ पढ़ाया।
चरण पादुका पूज,राम का राज्य चलाया।।
मन में रख सद्भाव, खुशी की आस जगाई।
सभी करें यह आस, भरत सा होवे भाई।।
भाई लक्ष्मण सा कभी, करे न कोई त्याग।
राम और सिय के लिए,रखते मनअनुराग।।
रखते मन अनुराग, तभी तो वन स्वीकारा।
रहे भ्रात के साथ,सदा ही उनको प्यारा।।
कह सेठी करजोरि, रीत रघुवंशी छाई।
सबकी है यह चाह,भरत लक्ष्मण सा भाई।।
डॉ एन के सेठी