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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०डा० डॉ एन के सेठी के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • भाई पर कुण्डलिया छंद

    साहित रा सिँणगार १०० के सौजन्य से 17 जून 2022 शुक्रवार को पटल पर संपादक आ. मदनसिंह शेखावत जी के द्वारा विषय- भाई पर कुण्डलिया में रचना आमंत्रित किया गया.

    कुंडलियां विधान-

    एक दोहा + एक रोला छंद
    दोहा -विषम चरण १३ मात्रा चरणांत २१२
    सम चरण ११ मात्रा चरणांत २१
    समचरण सम तुकांत हो
    रोला – विषम चरण – ११ मात्रा चरणांत २१
    सम चरण – १३ मात्रा चरणांत २२

    भाई पर कुण्डलिया छंद
    hindi kundaliyan || हिंदी कुण्डलियाँ

    बहिन पर कुंडलियां

    चंदा है आकाश में, धरती इतनी दूर।
    बहिन बंधु का नेह शुभ, निभे रीति भरपूर।
    निभे रीति भरपूर, नहीं तुम बहिन अकेली।
    भावों का संचार, समझना कठिन पहेली।
    नित उठ करते याद, नेह फिर क्यों हो मंदा।
    रखो धरा सम धीर, बंधु चाहे मन चंदा।


    बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ

    भाई पर कुण्डलिया छंद

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर के कुण्डलिया

    भाई हो तो भरत सा,दिया राज सब त्याग।
    उदासीन रहकर सदा , राम चरण अनुराग।
    राम चरण अनुराग , वेदना मन में भारी।
    देता खुद को दोष , कैकयी की तैयारी।
    कहे मदन कर जोर , शत्रु बन माता आई।
    मन मे अति है रोष , भरत से हो सब भाई।।


    भाई भाई प्रेम हो , रहे न कुछ तकरार।
    जान छिड़कते है सदा , बेशुमार है प्यार।
    बेशुमार है प्यार , सदा मिलकर है रहते।
    करे समस्या दूर ,वचन कटु कभी न कहते।
    कहे मदन कर जोर , करे घाटा भरपाई।
    रहे सदा ही त्याग , प्रेम हो भाई भाई।।


    भाई अब दुश्मन बना , चले फरेबी चाल।
    आया ऐसा दौर है , हर घर है बेहाल।
    हर घर है बेहाल , नहीं आपस में बनती।
    करते है तकरार , तुच्छ बाते हो सकती।
    आया समय खराब , रूष्ट होती है माई।
    मिलकर करना काम ,नही बन दुश्मन भाई।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    पुष्पा शर्मा”कुसुम” के कुण्डलिया


    भाई -भाई मिल रहें, आपस में हो प्यार।
    दुख -सुख में साथी रहें,यह अपना परिवार।
    यह अपना परिवार,साथ जीवन में देता।
    मने पर्व त्योहार,खुशी दामन भर लेता।
    बगिया रहे बहार ,कुसुम कलियाँ मुस्काई।
    हिम्मत होती साथ, जहाँ मिल रहते भाई।।

    पुष्पा शर्मा ‘कुसुम’

    बृजमोहन गौड़ के कुण्डलिया

    भाई भाई में कहाँ,पहले जैसा प्यार ।
    रिश्ते सारे कट गए,तलवारों की धार ।
    तलवारों की धार,हुआ बटवारा भारी ।
    बटे खेत खलिहान,बटे बापू महतारी ।
    बृज कैसी यह राह,लाज खुद रही लजाई ।
    बचे कहाँ अब राम, और लक्ष्मण से भाई ।।

    @ बृजमोहन गौड़

    डॉ एन के सेठी राजस्थान के कुण्डलियां

    भाई भरत समान हो,त्याग दिए सुख चैन।
    भ्रात राम की भक्ति में, लगे रहे दिन रैन।।
    लगे रहे दिन रैन, त्याग का पाठ पढ़ाया।
    चरण पादुका पूज,राम का राज्य चलाया।।
    मन में रख सद्भाव, खुशी की आस जगाई।
    सभी करें यह आस, भरत सा होवे भाई।।

    भाई लक्ष्मण सा कभी, करे न कोई त्याग।
    राम और सिय के लिए,रखते मनअनुराग।।
    रखते मन अनुराग, तभी तो वन स्वीकारा।
    रहे भ्रात के साथ,सदा ही उनको प्यारा।।
    कह सेठी करजोरि, रीत रघुवंशी छाई।
    सबकी है यह चाह,भरत लक्ष्मण सा भाई।।

    डॉ एन के सेठी

  • भोजन पर दोहे का संकलन

    भोजन पर दोहे का संकलन

    15 जून 2022 को साहित रा सिंणगार साहित्य ग्रुप के संरक्षक बाबूलाल शर्मा ‘विज्ञ’ और संचालक व समीक्षक गोपाल सौम्य सरल द्वारा ” भोजन ” विषय पर दोहा छंद कविता आमंत्रित किया गया जिसमें से भोजन पर बेहतरीन दोहे चयनित किया गया। जो कि इस प्रकार हैं-

    भोजन पर दोहे का संकलन

    मदन सिंह शेखावत के दोहे

    सादा भोजन कर सदा, करे परहेज तेल।
    पेट रहे आराम तो , होता सुखमय मेल।।

    तेल नमक शक्कर सदा,करना न्यून प्रयोग।
    रहे बिमारी दूर सब , सुखद बने संयोग।।

    भोजन में खिचड़ी रखे, खाकर हो आनंद।
    अच्छा रहता है उदर , होता परमानंद।।

    भोजन करना अल्प है , हो शरीर अनुसार।
    दीर्घ आयु होगा मनुज , पाता है आधार।।

    खट्टा मीठ्ठा जस मिले , समझे प्रभो प्रसाद।
    रुच रुच कर खाना सभी,मिट जाये अवसाद।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    राधा तिवारी ‘राधेगोपाल’ के दोहे

    भोजन सब करते रहो, दूर रहेंगे रोग।
    भोजन से ताकत मिले, कहते हैं कुछ लोग।।

    भोजन निर्धन को मिला, नहीं कभी भरपेट ।
    उसके बच्चे ताकते, सदा पड़ोसी गेट।।

    भोजन के तो सामने, फीके सब पकवान।
    भोजन के तो साथ में, मत करना जलपान।।

    भजन करें कैसे यहाँ, बिन भोजन के मीत।
    भरे पेट तब हो भजन, यह है जग की रीत।।

    हल्का भोजन ही रखे, हमको यहाँ निरोग।
    तेलिय भोजन का नहीं, करना अब उपयोग।।

    रोटी चावल लीजिए, भोजन में मनमीत।
    फल सब्जी अरु दाल से, करलो ‘राधे’ प्रीत।।

    राधा तिवारी ‘राधेगोपाल’
    अंग्रेजी एलटी अध्यापिका
    खटीमा, उधम सिंह नगर
    (उत्तराखंड)

    बृजमोहन गौड़ के दोहे

    जीने को खाना सखे, खाने को मत जीव l
    देर रात भोजन नहीं,तगड़ी जीवन नीव ll

    कम खाना अच्छा सदा,काया रहे निरोग l
    कर लो कुछ व्यायाम भी,और प्रात में योग ll

    पाचक और सुपथ्य कर,मांसाहारी त्याग l
    खान-पान को ही बने,खेत बगीचे बाग ll

    @ बृजमोहन गौड़

    अनिल कसेर “उजाला” के दोहे

    भोजन से जीवन चले, रहता स्वथ्य शरीर।
    सादा भोजन जो करें, भागे तन से पीर।

    भोजन हल्का ही करें, दूर रहे सब रोग।
    समय रहत भोजन करें, और करें जी योग।

    कोई भूखा मत रहे, करो अन्न का दान।
    जो उपजाता अन्न है, दे उनको सम्मान।

    अनिल कसेर “उजाला”

    केवरा यदु मीरा के दोहे

    सदा करेला खाइये, दूर रहे फिर रोग।
    शुगर रोग होवे नहीं,कहते डाक्टर लोग।।

    सादा भोजन जो करे,रहते सदा निरोग।
    भोजन बिन कब कर सके, योगासन या योग।।

    भोजन के ही बाद में, कहते पीजे नीर।
    घंटे भर के बाद पी,तन से भागे पीर।।

    भोजन संग सलाद हो,ककड़ी मूली मान।
    हरी सब्जियाँ लीजिए,देख परख पहचान।।

    भाजी में गुण है बहुत,पालक बथुआ साग।
    मिले विटामिन सी सुनो, रोग जाय फिर भाग।।

    केवरा यदु मीरा

    गोपाल सौम्य सरल के दोहे

    काया अपनी यंत्र है, चाहे यह आहार।
    भोज कीजिए पथ्य तुम, सुबह शाम दो बार।।

    भोजन से तन मन चले, ऊर्जा मिले अपार।
    खान-पान दो खंभ है, हरदम करो विचार।।

    तन को भोजन चाहिए, मन को भले विचार।
    खान-पान अच्छा करो, रहते दूर विकार।।

    बैठ पालथी मारके, रख आसन लो भोज।
    शांत चित्त के खान से, सँवरे मुख पाथोज।।

    ग्रास चबाकर खाइए, बने तरल हर बार।
    रस भोजन का तन लगे, आये बहुत निखार।।

    नमक मिर्च अरु तेल सब, खाओ कर परहेज।
    तेज लिये से रोग हो, मुख हो फिर निस्तेज।।

    दूध दही लो भोज में, ऋतु फल भरें समीच।
    कर अति का परहेज सब, उदय अस्त रवि बीच।।

    खट्टा मीठा चटपटा, सभी बढ़ाएं भोग।
    उचित करो उपयोग सब, काया रहे निरोग।।

    सुबह करो रसपान तुम, ऋतु फल उत्तम जान।
    दूध पीजिए रात को, जाये उतर थकान।।

    सात दिवस में एक दिन, रखो सभी उपवास।
    सुधरे पाचन तंत्र जब, बीते हर दिन खास।।

    नींद जरूरी भोज है, तन चाहे विश्राम।
    स्वस्थ रहे फिर मन बड़ा, अच्छे होते काम।।

    भोज प्रसादी ईश की, देती सबको जान।
    रूखी सूखी जो मिले, लो प्रभु करुणा मान।।

    शब्दार्थ-
    पाथोज- कमल
    समीच- जल निधि/ यहाँ ‘रस युक्त’

    गोपाल ‘सौम्य सरल’

    पुष्पा शर्मा कुसुम के दोहे

    आवश्यक तन के लिए,भोजन उचित प्रबंध।
    पोषण सह बल भी बढ़े, जीवन का अनुबंध।।

    सात्विक भोजन कीजिए, बने स्वास्थ्य सम्मान।
    तजिए राजस तामसी, है रोगों की खान।।

    भोजन माता हाथ का,रहे अमिय रसपूर।
    मिले तृप्ति शीतल हृदय,ममता से भरपूर।।

    भूख स्नेह कारण बने, भोजन करना साथ।
    हो अभाव जो स्नेह का,नहीं बढ़ायें हाथ।।

    अन्न, वस्त्र, जल दान से, मिलता है परितोष।
    भूखे को भोजन दिये, मन पाता संतोष।।

    पुष्पा शर्मा ‘कुसुम’

    डॉ एन के सेठी के दोहे

    सात्विकभोजन कीजिए,मन हो सदा प्रसन्न।
    चित्त सदा ऐसा रहे, जैसा खाओ अन्न।।

    भोजन मन से ही करें, बढ़े भोज का स्वाद।
    तन मन दोनों स्वस्थ हों, रहे नहीं अवसाद।।

    चबा चबा कर खाइए, भोजन का ले स्वाद।
    तभी भोज तन को लगे, होय नहीं बर्बाद।।

    भोजन उतना लीजिए, जिससे भरता पेट।
    झूठा अन्न न छोड़िए, यह ईश्वर की भेंट।।

    भोजन की निंदा कभी,करे न मुख से बोल।
    षडरस काआनंद ले,हो प्रसन्न दिल खोल।।

    © डॉ एन के सेठी

    डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव मंजुल के दोहे

    भोजन तब रुचिकर लगे,बने प्रेम से रोज।
    भावों की मधु चाशनी, नित्य नवल हो खोज।।

    मैदा शक्कर अरु नमक , सेवन दे नुकसान।
    गुड़ आटा फल सब्जियाँ, खा कर हों बलवान।।

    सर्वोत्तम भोजन वही,माँ का जिसमें प्यार।
    कभी न मन से छूटता ,अद्भुत स्वाद दुलार।।

    चटनी की चटकार से ,बढ़े भोज का स्वाद।
    आम आँवला जाम हर, चटनी रहती याद।।

    मूँग चना अरु मोठ को ,रखिये रोज भिगाँय।
    करें अंकुरित साथ गुड़ , प्रात:खा बल पाँय।।

    डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव मंजुल

  • कर्म पर हिंदी में कविता

    श्रृंगार छन्द में एक प्रयास सादर समीक्षार्थ

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    कर्म पर हिंदी में कविता

    कर्म का सभी करेंआह्वान।
    कृष्ण का ये है गीता ज्ञान।
    कर्मबिन होतभाग्य से हीन।
    सृष्टि में होत वही है दीन।।

    कर्म जो करे सदा निष्काम।
    पाय वह शांति औरआराम।
    आत्म मेंही स्थित हो हरप्राण।
    ब्रह्म में पा लेता है त्राण।।

    सृष्टि में रहता जो आसक्त।
    भोग में लिप्त रहे हर वक्त।
    बंधनों से होत न वह मुक्त।
    सृष्टि में ना ही वहउपयुक्त।

    कर्मफल से बनता है भाग्य।
    कर्म होशुभ मिलता सौभाग्य।
    त्याग देता है जो अभिमान।
    सत्य का हो जाता है ज्ञान।।


    जान लेता है जो भी कर्म।
    साथ हीअकर्मऔर विकर्म।
    सृष्टि की आवाजाही बंद।
    मुक्त हो जीवन का हर फंद।

    जीतता इन्द्रियसकलसमूह।
    होत ना उसे कर्म प्रत्यूह।
    कर्म से होता जीवन्मुक्त।
    जीव होत है ब्रह्म संयुक्त।।

    कर्म ही जीवन काआधार।
    कर्म ही रचता है संसार।
    कर्म तो करोसभी निष्काम।
    जीव पा जाता है विश्राम।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • लता मंगेशकर पर कविता

    लता मंगेशकर पर कविता

    लता मंगेशकर पर कविता

    कहाँ गई वो सुरों की मल्लिका

    कहाँ गई वो सुरों की मल्लिका
    कहाँ गई वो मधुर सी कोकिला
    जिसके सुरों के जादू से सारा
    हिंदूस्तां था फूलों सा खिला।

    छेड़ती थी जब सुरों की तान
    मंद -मुग्ध हो जाता हिन्दूस्तान
    तेरे गुनगुनाएं गीतों से
    ऊर्जा से भरता नौजवान।।

    बस गई थी सभी के दिलों में
    भारत की यह लाडली बेटी
    तेरे गीतों को गा -गाकर
    चलती थी कितनों की रोटी।।

    जाते जाते न कोई संदेश
    न पैगाम तेरा कोईं आया
    खफा तो नही थी हमसे तुम
    कोईं गीत भी न गुनगुनाया।।

    तेरी जगह न कोईं ले पाया
    न ही कोईं ले पाएगा
    गाये गी जब गीत कोकिला
    तेरा ही जिक्र जुबां मे आएगा।।

    जगदीश कौर
    प्रयागराज इलाहाबाद

    मुक्तक – लता दीदी


    सदा अपने गुरुजन की,
    चरण की पादुका दीदी।
    भारती माँ के चरणों की,
    परम् आराधिका दीदी।
    जगत में है नहीं कोई,
    लता को जो नहीं जाने।
    रही संगीत में अर्पित,
    सुरों की साधिका दीदी।
    ★★★★★★★★★★
    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”✍️

    लता मंगेशकर अमर रहे

    सुरों की मल्लिका, साक्षात सरस्वती,
    मधुर गुंजन से, भर उठी सारी धरती,
    मानव, पशु पक्षी, वृक्ष लता, सरिता,
    पर्वत, सागर, झरना, सर्वत्र है गूंजती,
    लता दीदी का गायन और सधा हुआ सुर,
    करते रहे हैं श्रवण, नर किन्नर देव असुर!
    उनकी आवाज़ की खनक, सदा बहार है,
    कानों में गूंजती हैं जैसे वीणा के तार हैं।
    अनेक भाषाओं में दीदी ने गाने गाए हैं
    हर किसी के दिल में, आस जगाए हैं।
    शास्त्रीय संगीत, आधुनिक युग के गीत,
    दक्षता में कोई कसर नहीं होती प्रतीत ।
    ऐसी सुर साधिका को , हम नमन कर रहे,
    देश दुनिया में, लता मंगेशकर अमर रहे!


    पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़

    मल्लिका-ए-आवाज़

    अद्भुत-अदम्य,सुर-सरगम की एक रानी,
    सुनाता है”अकिल”उनकी आज कहानी।
    जन्म लिए हिंदुस्तान के मध्य प्रदेश में,
    संगीत की साधिका बनी,हमारे देश में।
    नाम है,आद.लता मंगेशकर जी”स्वर-कोकिला”,
    पिता जी से संगीत का दीदी को है “वर” मिला।
    बालपन से ही संगीत का किया आगाज,
    लता मंगेशकर जी हैं,मल्लिका-ए-आवाज़।

    संगीत,दीदी को विरासत में मिला था तोहफा,
    गीत के माध्यम से भारत से करती थी वफा।
    मिठी आवाज,कुछ ऐसा था उनका अंदाज,
    लता मंगेशकर जी है,मल्लिका-ए-आवाज़।

    मेहनत के दम-पर,पुरस्कार जीते हैं कई बार,
    लता जी,पार्श्व-गायिका,गीत गाए हैं 30हजार।
    “ए मेरे वतन के लोगों”,गीतों का है सरताज,
    लता मंगेशकर जी हैं,मल्लिका-ए-आवाज़।

    लता जी,के आवाज का कुछ ऐसा है जादू,
    सुनकर आनंदित होंवे हर कोई,संत-साधु।
    पूरी दुनिया करती है उनके गानों पर नाज,
    लता मंगेशकर जी हैं,मल्लिका-ए-आवाज़।

    “भारत रत्न” का जब दीदी को सम्मान मिला,
    दीदी के मुख पर न मिटने वाला मुस्कान खिला।
    6फरवरी2022 को दीदी जी का हुआ निधन,
    शोकाकुल है हर जनमानस दुःखी है हर-मन।
    लता मंगेशकर जी,हर चेहरे पर गम दे-चली,
    स्व.लता मंगेशकर जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
    स्वर से अपने पूरे विश्व में जो करती है राज,
    लता मंगेशकर जी हैं,मल्लिका-ए-आवाज़।

    अकिल खान,रायगढ़. जिला-रायगढ़(छ.ग.)

    भारतरत्न स्वरकोकिला लता मंगेशकर जी पर दोहे

    स्वर साम्राज्ञी कोकिला,चल दी प्रभु के धाम।
    गिरी यवनिका मंच पर, लता कथा विश्राम।।

    मृदुभाषी ममतामयी, अद्भुत थी आवाज।
    जीवन में थी सादगी, अमर हो गई आज।।

    अश्रुपूर्ण माँ भारती, दुखी हुआ जन आज।
    स्तब्ध हुआ पूरा जगत,कृतज्ञ राष्ट्र समाज।।

    लता न केवल नाम है, है पूरा संगीत।
    अमर हो गई आज वह,यही जगत की रीत।।

    सदियों तक चलता रहे, गीतों में वह नाम।
    स्वर की देवी साधिका,शत शत करें प्रणाम।।

    *©डॉ नवल किशोर सेठी*

  • गणतंत्र दिवस – डॉ एन के सेठी

    गणतंत्र दिवस – डॉ एन के सेठी

    Republic day

    गणतंत्र दिवस डॉ एन के सेठी

    लोकतंत्र का पर्व मनाएं।
    सभी खुशी से नाचे गाएं।।
    दुनिया में है सबसे न्यारा।
    यहभारत गणतंत्र हमारा।।

    इसकी जड़ है सबसे गहरी।
    इसकी रक्षा करते प्रहरी।।
    सबसे बड़ा विधान हमारा।
    नमन करे जिसको जग सारा।।

    लोकतंत्र का महापर्व है।
    हमको इस पर बड़ा गर्व है।।
    भारत प्यारा वतन हमारा।
    ये दुनिया में सबसे न्यारा।।

    भिन्न – भिन्न जाती जन रहते।
    विविध धर्म भाषा को कहते।।
    नाना संस्कृतियों का संगम है।
    खुशियाँ होती कभी न कम है।।

    उत्सव अरु त्यौहार मनाते।
    इक दूजे से प्यार जताते।।
    नारी का सम्मान यहाँ है।
    मेहमान का मान यहाँ है।।

    वसुधा को परिवार समझते।
    सर्वसुख की कामना करते।।
    करती पावन गंगा-धारा।
    सूरज फैलाए उजियारा।।

    हम दुश्मन को गले लगाते।
    सबमिल गीत खुशी के गाते।।
    करता हमसे जो गद्दारी।
    मिटती उसकी हस्ती सारी।।

    रण में पीठ न कभी दिखाते।
    दुश्मन के हम होश उड़ाते।।
    त्याग शील पुरुषार्थ जगाएं।
    लोकतंत्र का मान बढ़ाएं।।

    ©डॉ एन के सेठी