गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता
गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता पैरा भूँसा ,कांदी-कचरा,कोठा कोंन सँवारे,हड़ही होगे ,बछिया कहिके रोजेच के धुत्कारे।। बगियाके बुधारू ,छोड़िस,गउधन आन खार।बांधे-छोरे जतने के,झंझट हे बेकार।। बछिया आगे शहर डहर अउपारा-पारा घुमय।कोनो देदे रोटी-भातलइका मन ह झुमय।। देखते-देखत बछिया संगीघोसघोस ले मोटागे।चिक्कन-देहें ,दिखन लागयमन सबके हरसागे।। आना होगे एक दिन संगीबुधारू के हाट।देख परिस ,बछिया ललालच … Read more