मित्र और मित्रता पर कविता – बाबूराम सिंह
मित्र और मित्रता पर कविता हो दया धर्म जब मित्र में,सुमित्र उसको मानिए।ना मैल हो मन में कभी, कर्मों को नित छानिए।आदर सेवा दे मित्र को,प्यार भी दिल से करो।दुखडा उस पर कभी पड़े, दुःख जाकर के हरो।मित्रों से नाता कभी भी ,भूल कर तोड़ों नहीं। पथ बिचमें निज स्वार्थवश,ज्ञातरख छोड़ी नहीं। भाव रख उत्तम … Read more