Tag: #राजेश पाण्डेय अब्र

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 राजेश पाण्डेय अब्र के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • भक्ति पर कविता

    भक्ति पर कविता

    तोरन पुष्प सजाय के
    उत्सव माँ के द्वार!!! 
    गीत सुरीले गूँजते,
    लटके बन्दनवार!!!!

    नाम अनेको दे दिए,
    माई जग में एक!!! 
    नामित ब्रम्हाचारिणी,
    कर लेंना अभिषेक!!

    परम सुखी परिवार हो
    माँग भक्ति के भीख!!! 
    चरण धूलि माथे लगा
    वत्स भजन ले सीख!!!

    –राजेश पान्डेय वत्स
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • प्रीत के रंग में-राजेश पाण्डेय *अब्र*

    प्रीत के रंग में

    गुनगुनाती हैं हवाएँ
    महमहाती हैं फ़िजाएँ
    झूम उठता है गगन फिर
    खुश हुई हैं हर दिशाएँ
                      प्रीत के रंग में
                      मीत के संग में,

    रुत बदलती है यहाँ फिर
    फूल खिल उठते अचानक
    गीत बसते हैं लबों पर
    मीत मिल जाते अचानक,

    रंग देती है हिना जब
    मन भ्रमर बनता कहीं पर
    गंध साँसों की बिखरती 
    सौ उमंगें हैं वहीं पर,

    हर बरस लगता है मेला
    लोग मिल जाते कहीं पर
    हाथ आए चाँद फिर तब
    ख्वाब पूरे हों वहीं पर
                       प्रीत के रंग में
                       मीत के संग में।

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • है नमन देश की माटी को -राजेश पाण्डेय अब्र

    है नमन देश की माटी को

    विश्वजीत है स्वंत तिरंगा

    तीन रंगों की अमृत गंगा
    सरफ़रोश होता हर जन मन 
    मत लेना तुम इससे पंगा,

    ऊर्ज समाहित सैन्य बलों में

    जन,  धन लेकर खड़े पलों में
    ऊर्जा  का  संचार  देश  में
    प्रश्न खड़े अनुत्तरित हलों में,

    सबल करे नेतृत्व देश का

    अभिमानी हो नहीं द्वेष का
    वक़्त पड़े सर कलम कर सके
    गद्दारी  यूति  परिवेश का,

    है नमन देश की माटी को

    वतनपरस्ती परिपाटी को
    शूर वीर से देश लबालब
    कर चंदन माथे माटी को.

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर

  • जीवन के दोहों का संकलन

    जीवन के दोहों का संकलन

    jivan doha

    जीवन के दोहों का संकलन

    1-

    है मलीन चादर चढ़ी, अंतः चेतन अंग।

    समझे तब कैसे भला, हूँ मैं कौन मलंग।।

    2-

    प्रतिसंवेदक कॄष्ण हैं, लिया पार्थ संज्ञान।

    साध्य विषय समझे तभी, हुआ विजय अभियान।।

    3-

    मैं अनुनादी उम्र भर, अविचारी थे काज।

    जिस दिन प्रज्ञा लौ जली, समझे तब यह राज।।

    (मैं – अहंकार)

    4-

    अवधारक बनकर करें, कुण्डलिया से योग।

    नित्य करें जब ध्यान तो, हुए दूर दुर्योग।।

    5-

    सत्य यही अवधारणा, ब्रह्म मिले संज्ञात।

    यक्ष प्रश्न जीवन समर, करें यत्न से ज्ञात।।

    6-

    कर्मयोग इंसान को, दे प्रशांत सा मान।

    कर्मवाद अनुनाद ही, ईश्वर का गुणगान।।

    7-

    मनस्कार का अवनमन, ईश्वर सम्मुख मान।

    नमस्कार के भाव से, है मिलता सम्मान।।

    (मनस्कार – पूर्ण चेतना (ज्ञान)

    8-

    मति विवेक चिंतन करे, मन में अंकुश डाल।

    उच्श्रृंखल मत छोड़िये, रखें नियंत्रित हाल।।

    9-

    सोना कुंदन जब बने, प्रखर भाव का मान।

    परिष्कार शुचिता गढ़े, निर्मल मन अंजान।।

    10-

    निज इच्छा हरि कामना, समझें जब यह बात।

    नैतिकता मन को कसे, सुधरे तब हालात।।

    11-

    विपदा में होती सदा, कष्टों की भरमार।

    जो तारक बनते स्वयं, उनकी नैया पार।।

    12-

    दिव्य ज्ञान की लौ जहाँ, जल जाए इक बार।

    प्रमा सुधा बरसे वहीं, जैसे मेघ अपार।।

    (प्रमा – चेतना, आत्मज्ञान)

    13-

    दर्प कभी अच्छा नहीं, मिले न इसको मान।

    अहंकार का यह परम, खो देता सम्मान।।

    14-

    हरि आए मन की डगर, निश्छल हिय विश्वास।

    सत्य मौन आराधना, प्रभु के निकट निवास।।

    15-

    परहित लक्ष्य बनाइये, तज कर निज अभिमान।

    पुण्य करे शुचि आपको, ले ईश्वर संज्ञान।।

    16-

    वैचारिकता शून्य सी, यत्र तत्र हो तंत्र।

    सकारात्मक सोच सदा, खुश जीवन का मंत्र।।

    17-

    पानी सदा बचाइये, नित्य रहे यह ध्यान।

    जल ही जीवन सूत्र है, लिया विश्व संज्ञान।।

    18-

    अस्त व्यस्त हमने किया, पर्यावरण मिजाज।

    अतिवादी मौसम हुआ, समझे तब हैं आज।।

    19-

    प्रातः उठकर जो करे, नित्य ध्यान फिर योग।

    स्वास्थ्य सूत्र जिसको मिले, रहता वही निरोग।।

    20-

    वाणी संयम से मिले, सामाजिक सम्मान।

    तोल मोल बोली सदा, रखे आपका मान।।

    21-

    अभिनन्दन समतुल्य है, नर नारी का मान।

    इनमे अंतर है नहीं , दोनों एक समान।।

    22-

    करें अर्चना ईश की, हरे तमस हर पीर।

    अन्तर्मन को फिर चलें, यात्रा करें सुधीर।।

    23-

    अनुभव के आधार पर, मिलता सबको मान।

    सामाजिक परिवेश में, है इसका सम्मान।।

    24-

    सच है नश्वर जगत में, प्रेम भाव का तत्व।

    जो इसमें रच बस गया, मिले उसे अमरत्व।।

    25-

    दिल की बगिया में सदा, खिलें प्रेम के फूल।

    मोह सभी का भंग हो, सार तत्व ये  मूल।।

    26-

    ईश्वर के अनुराग से, हो कष्टों का अंत।

    अवनि के हर जीव सदा, हर्षित रहे अनंत।।

    27-

    वाणी से ही प्रेम है, और उसी से बैर।

    मधुर भाषिता सर्वदा, करते सबकी खैर।।

    28-

    भारत की संस्कृति सदा, रही विश्व में श्रेष्ठ।

    दुनियाँ रमने आ गयी, मान कुम्भ को ज्येष्ठ।।

    29-

    नारी के  सम्मान से, उन्नति करे समाज।

    सतयुग में ऋषि कह गये, माने कलयुग आज।।

    30-

    प्रात कभी ऐसा रहे, सुनते कोयल तान।

    मस्जिद में घंटी बजे, मंदिर करे अजान।।

    नाम – राजेश पाण्डेय

    उपनाम – अब्र

    फोन  – 98266-24298
    ई मेल [email protected]
    पता – अक्षरधाम,
            श्री राम मंदिर के सामने, इंद्रप्रस्थ कॉम्प्लेक्स के पास, ब्रह्मपारा , अम्बिकापुर,
    जिला – सरगुजा (छत्तीसगढ़)
    पिन – 497001

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  • समर शेष है रुको नहीं

    समर शेष है रुको नहीं

    समर शेष है रुको नहीं
    अब करो जीत की तैयारी
    आने वाले भारत की
    बाधाएँ होंगी खंडित सारी,

    राजद्रोह की बात करे जो
    उसे मसल कर रख देना
    देश भक्ति का हो मशाल जो
    उसे शीश पर धर लेना,

    रुको नहीं तुम झुको नहीं
    अब मानवता की है बारी
    सुस्त पड़े थे शीर्ष पहरुए
    जन मानस दण्डित सारी,

    कालचक्र जो दिखलाए, तुम
    उसे बदल कर रख देना
    कठिन नहीं है कोई चुनौती
    दृढ़ निश्चय तुम कर लेना,

    तोड़ो भी सारे कुचक्र तुम
    आदर्शवाद को तज देना
    नयी सुबह में नई क्रांति का
    गीत वरण तुम कर लेना ।

    राजेश पाण्डेय “अब्र”
       अम्बिकापुर

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