ये आम अनपढ़ बावला है
ये आम अनपढ़ बावला है दुर्व्यवस्था देख,क्या लाचार सा रोना भला है।क्या नहीं अब शेष हँसने की रही कोई कला है। शोक है उस ज्ञान पर करता विमुख पुरुषार्थ से जो,भाग्य की भी भ्राँतियों ने,कर्म का गौरव छला है। आग तो कोई लगा दे,रोशनी के नाम से पर,क्रांति का नवदीप केवल चेतना से ही जला … Read more