विजय पर्व दशहरा

विजय पर्व दशहरा : किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

doha sangrah

राम समन्दर सेतु हित, कपि गण नल हनुमंत।
सतत किए श्रम साधना, कृपा दृष्टि सियकंत।।

किए सिन्धु तट स्थापना, पूजे सहित विधान।
रामेश्वर शुभ रूप शिव, जगत रहा पहचान।।

सैन्य चढ़ी गढ़ लंक पर, दल ले भालु कपीश।
मरे दनुज बहु वीर भट, सजग राम जगदीश।।

कुम्भकर्ण घननाद से, मरे दनुज दल वीर।
राक्षसकुल का वह पतन, हरे धरा की पीर।।

सम्मति सोच विचार के, कर रावण से युद्ध।
मारे लंक कलंक को, करने वसुधा शुद्ध।।

शर्मा बाबू लाल भी, करता लिख कर गर्व।
मने सनातन काल से, विजयादशमी पर्व।।

‘विज्ञ’ करे शुभकामना, हो जग का कल्याण।
रावण जैसे भाव तज, मिले मनुज को त्राण।।


बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
निवासी – सिकन्दरा, दौसा
राजस्थान ३०३३२६

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