पर्यावरण दूषित हुआ जाग रे मनुज जाग/सुधा शर्मा
धानी चुनरी जो पहन,करे हरित श्रृंगार।
आज रूप कुरूप हुआ,धरा हुई बेजार।
सूना सूना वन हुआ,विटप भये सब ठूंठ।
आन पड़ा संकट विकट,प्रकृति गई है रूठ।।
जंगल सभी उजाड़ कर,काट लिए खुद पाँव।
पीड़ा में फिर तड़पकर, ढूंढ रहे हैं छाँव।।
अनावृष्टि अतिवृष्टि है,कहीं प्रलय या आग।
पर्यावरण दूषित हुआ,जाग रे मनुज जाग।।
तड़प तड़प रोती धरा,सूखे सरिता धार।
छाती जर्जर हो गई,अंतस हाहाकार।।
प्राण वायु मिलते कहाँ,रोगों का है राज।।
शुद्ध अन्न जल है नहीं,खा रहे सभी खाद।।
पेड़ लगाओ कर जतन,करिए सब ये काम।
लें संकल्प आज सभी,काज करिए महान।।
फल औषधि देते हमें,वृक्ष जीव आधार।
हवा नीर बाँटे सदा,राखे सुख संसार।।
करो रक्षा सब पेड़ की,काटे ना अब कोय।
धरती कहे पुकार के,पीड़ा सहन ना होय।।
बढ़ती गर्मी अनवरत,जीना हुआ मुहाल।
मानव है नित फँस रहा, बिछा रखा खुद जाल।।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़