शुद्ध वायु दुर्लभ हुई,
प्राणवायु की किल्लत है।
प्रदूषित हो गया नदियों का जल,
देवभूमि में ज़िल्लत है।
खाना दूषित,पानी दूषित,
देवालय भी नहीं बचे।
हाहाकार मचा दुनिया में,
ज़र्रा-ज़र्रा प्रदूषित है।
विकराल समस्या प्रदूषण की,
सुरसा सा मुँह फाड़े है।
निगल जाएगी भावी पीढ़ी,
अब भी गर हम अड़े रहे।
पूर्वजों ने इस समस्या को,
बरसों पहले पहचाना था।
आँगन में हो वृक्ष नीम का,
हर घर ने यह ठाना था।
एक पावन तुलसी का बिरवा,
हर अँगना में होता था।
अतिथि हो या गृहस्वामी,
बाहर पैरों को धोता था।
रोज सुबह उठ द्वार झाड़कर,
गोबर पानी सींचा जाए।
कचरा सकेल घुरूवा में डालो,
खाद बने,उर्वरता लाये।
भूल गए हम सारी व्यवस्था,
आधुनिकता की हलचल में।
झोंक दिया पूरी दुनिया को,
घोर प्रदूषण के दलदल में।
अब भी सम्भल सकते है साथी,
देर से ही पर जागो तो।
एकजुटता दिखलाओ सब,
प्लास्टिक को त्यागो तो।
जितना सम्भव पेड़ लगाओ,
नदियों में ना कचरा बहाओ।
जतन करो और पानी बचाओ,
सच कहने से ना घबराओ।
एक निवेदन है सबसे,
ज़रा पलटकर देखो पीछे।
भावी पीढ़ी तर जाएगी,
आज अगर हम आँख ना मीचे।
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विजिया गुप्ता”समिधा”
दुर्ग-छत्तीसगढ़