जलती धरती/पूनम त्रिपाठी

जलती धरती/पूनम त्रिपाठी

NATURE
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धरती करे पुकार मानव से
मुझे न छेड़ो तुम इंसान
बढ़ता जाता ताप हमारा
क्यों काटते पेड़ हमारा
पेड़ काट रहा तू इंसान
जलती धरती सूखे नलकूप
सूरज भी आग बरसाए
बादल भी न पानी लाये
मत उजाड़ो मेरा संसार
धरती का बस यही पुकार
मै रूठी तो जग रूठेंगा
मेरे सब्र का बांध टूटेगा
भूकंप बाढ़ क़ो सहना पड़ेगा
सुंदर बाग बगीचे मेरे
हे मानव सब काम आएंगे
मेरे साथ अन्याय करोगे
सह न पाओगे बिपदा तुम
बड़े बड़े महलो क़ो बनाकर
न डालो तुम मुझपर भार
पेड़ो क़ो तुम नष्ट करके
तुम उजाड़े मेरा संसार l

पूनम त्रिपाठी
गोरखपुर. उत्तर प्रदेश

सुशी सक्सेना

यह काव्य संकलन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में अवतरित लेखिका सुशी सक्सेना के सहयोग से हो पाई है । अभी आप इंदौर मध्यप्रदेश में हैं । अभी आप अवैतनिक संपादक और कवयित्री के रूप में kavitabahar.com में अपना सेवा दे रही है। आपकी लिखी शायरियां और कविताएं बहुत सी मैगजीन और न्यूज पेपर में प्रकाशित होती रहती हैं। मेरे सनम, जिंदगी की परिभाषा, नशा कलम का, मेरे साहिब, चाहतों की हवा आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।