जलती धरती/श्रीमती शशि मित्तल “अमर”
आओ कुछ कर लें प्रयास
धरती माँ को बचाना है,
दूसरों से नहीं रखें आस
स्वयं कदम बढ़ाना है,
देख नेक कार्य सब आएं पास
सबमें चेतना जगाना है।
ईंट कंक्रीट का बिछा कर जाल
वनों को कर दिया हलाल
अपनी धरा को बहुत रुलाया है,
हजारों पंछियों का था जो बसेरा
काट नीड़ उनका उजाड़ा है।
कहां से मिले शुद्ध वायु
स्रोत ऑक्सीजन का गंवाया है,
बड़,पीपल,तुलसी काट-काट कर
कैक्टस बहुत जगाया है।
नदी पोखर किये दूषित
सारा गंद वहीं बहाया है
धरती मां को प्लास्टिक से रोप कर
उसका दम बहुत घुटाया है।
मानव ने उतार दी मानवता
शैतानियत का पहना जामा है
स्वार्थ के हुआ वशीभूत
भला बुरा नहीं सोच पाया है।
आज उसको दिखता जीवन सुखमय
भविष्य नहीं देख पाया है
बच्चों के भविष्य खातिर बचाता धनराशि
क्या बच्चों के लिए पर्यावरण बचाया है??
अब भी चेत जाओ ओ मूर्ख मानव
जलती धरा को बचाना है!
खूब पौधे लगा,उन्हें पेड़ बनाना है,
नदी नहरों को स्वच्छ रख कर
जलनिधि को बचाना है।
विकास के नाम पर काटे गए
वृक्षों की भरपाई कराना है!
आओ सब मिलकर लें संकल्प यही
हमें पर्यावरण रक्षित कर,
ढ़ेरों पेड़ लगाना है!!
श्रीमती शशि मित्तल “अमर”
बतौली, सरगुजा (छत्तीसगढ़)