“परिचय एक नये अंदाज में “
गंगाधर मनबोध गांगुली “सुलेख “
समाज सुधारक ,युवा कवि
हर चीज का एक कला है ,पढ़ने का, लिखने का, सोचने का, और समझने का ।हर इंसान का अपना अलग अन्दाज होता है ।मैंने सोचा क्यों न परिचय देने का भी ,एक नये अन्दाज होना चाहिए ? आप लोगों के सामने प्रस्तुत है :—-
“परिचय एक नये अन्दाज में “
अंदाज अपना अपना ।
नाम है मेरा गंगाधर गांगुली ,
ग्राम है आँवला चक्का ।
क्रिकेट खेलने जाने पर ,
मरता हूँ चौका और छक्का ।।01।।
पोस्ट मेरा रोहिना है ,
विकास खण्ड -सरायपाली ।
चौका- छक्का मारने पर,
लोग बजाते हैं ताली ।।02।।
जिला मेरा महासमुन्द है,
राज्य छत्तीसगढ़ ।
दुनियाँ के लोगों को कहता हूँ
मत रहो अनपढ़ ।।03।।
जब शिक्षित हो जाओगे, तो आपका शोषण नहीं होगा ।एक रोटी काम खाओ , लेकिन अपने बच्चों को जरूर बढ़ाओ ।
पिन कोड है, चार नौ तीन पांच पांच आठ ,
और मैं हूँ छत्तीसगढ़ का वासी ।
मेरा जन्म तिथि है दोस्त ,
दो मई सन उन्नीस सौ चौरासी ।।04।।
इंसानियत को मैं मानता हूँ
मैं हूँ भारतवासी ।
कोई भी अच्छा काम करे ,
उसे देता हूँ शाबासी ।।05।।
घर मेरा मंदिर है ,क्योंकि मेरे माँ-बाप से बढ़कर न कोई देवी है न कोई देवता ।बाहर मेरा स्कूल है ,जहाँ से कुछ न कुछ सीखते रहता हूँ ।
घर मेरा मन्दिर है ,
बाहर मेरा स्कूल ।
माँ – बाप मुझे कहते हैं ,
अपने फर्ज को मत भूल ।।06।।
इस दुनियाँ में यारों,
कोई किसी से कम नहीं ।
जो इंसान अपने आपको कमजोर समझता है ,वह कभी आगे नही बढ़ सकता ।किसी भी क्षेत्र में -चाहे जाति और धर्म ही क्यों न हो ।
इस दुनियाँ में यारों ,
कोई किसी से कम नहीं ।
इस लिए गंगाधर गांगुली कहता है ,
मैं किसी कवि से कम नहीं ।।07।।
किसी न किसी बात पर ,
यहाँ हर कोई महान है ।
आप लोग भी महान हो ,और मैं भी महान हूँ ।
किसी न किसी बात पर ,
यहाँ हर कोई महान है ।
कोई पढ़ने में कोई लिखने में,
कोई सोचने में भगवान है ।।08।।
मुझसे संपर्क करने के लिए, मेरा मोबाइल नंबर है,
सन्तानबे पांच सौ बयालीस ,
सत्रह दो सौ दो ।
मेरा सिद्धान्त है दोस्त ,
जीओ और जीने दो ।।09।।
माँ-बाप मुझे कहते हैं ,
बेटा लिख ऐसा लेख ।
हर कोई कहने लगे,
युवा कवि सुलेख ।।10।।
सबका मालिक एक है ,
एक है भगवान ।
सिर्फ कहने में अच्छा लगता है ,यहाँ तो हर जगह जाति ,और धर्म की लड़ाई है ।मानवता और इंसानियत बहुत कम देखने को मिलते हैं ।
सबका मालिक एक है ,
एक है भगवान ।
आप सभी को यारों ,
गंगाधर गांगुली का प्रणाम।।11।।
05
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“परिचय एक नये अंदाज में ”
