*बेटी -माँ*
समाजी सोच बदलो तो,
कुरीती छोड़ दो अब तो।
जमाना चाँद पर पहुँचे,
पढाई छोड़ मत अब तो।
विकासी बात करते है,
कथा भाषण भले देते।
दहेजी रीत मौताणे,
सुजानों छोड़ दो अब तो।
( मौताणा~मृत्यु भोज)
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कहीं परिवार बर्बादी,
कहीं घर खेत बिकते हैं
कभी बेटी नहीं बचती,
तभी परिजन सिसकते हैं।
दहेजी भेड़िये तोले,
खुदा का नूर काँटे पर।
वही बेटी सयानी के,
सदा कातिल निकलते हैं।
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विधाता की रुहानी ये,
निशानी मात हित बेटी।
गरीबी की बदौलत ही,
तुले काँटे जनित बेटी।
अभागी मात रोती है,
दहेजी रीत का रोना।
कहे माता विधाता से,
अभागी क्यों बनी बेटी।
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कहे माँ आज बेटी से,
बनो मजबूत मन बेटी।
रखो साहस रखो धीरज,
भले नाजुक बदन बेटी।
न होंगे कृष्ण पायक भी,
वृथा उम्मीद मत करना।
बचाना आप अपने को,
यही करना जतन बेटी।।
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धरा आकाश प्राकृत जल,
हमारी देह बेटी से।
कुलों की मान मर्यादा,
बचेगा गेह बेटी से।
धुरी है सृष्टि की बेटी,
अमानत है विधाता की।
कहूँ करजोरि मैं सबसे,
निभाना नेह बेटी से।
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पढ़ाओ बेटियों को तो,
बढेगी रोशनी घर की।
सितारे जन्म भी लेंगे,
बने आभा पिया दर की।
घरों को जोड़ती बेटी,
निभाती है सदा रिश्ते।
रखो बेटी सदा वंदित,
भले निज की भले पर की।
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