भावों का उमड़ता सागर है।
जो छोटी सी बातों में
तो कभी बतलाता ,
गमों का टूटा पहाड़ है।
कभी शांत चित्त से ,
सब सह जाता ।
तो कभी ,
हिंसक शेर-सा दहाड़ है।।
ये सब आदतन दिखाते
चूंकि पूर्वज जिसके बंदर हैं।
इंसानों में कुछ नहीं
भावों का उमड़ता सागर है।
जिनके स्वभावों को
उन्हें समझाना,
होता है दूना दूभर।
नासमझ जग में
जहां सब पर्दा में है
वहां जीते हैं ये
समझदार बनकर।
मरने-मारने की बात करते हैं
और कहते “सच्चा मेरा प्यार है।”
इंसानों में कुछ नहीं
भावों का उमड़ता सागर है।
जो भी उनके
संग सफर में,
हमराही उसे जान लिया।
साथ छोड़ कर
अपनी राह हुए जो,
उसे बेवफा
खुदगर्ज मान लिया।
जानते हुए कि
हर किसी का अलग शहर है।
इंसानों में कुछ नहीं
भावों का उमड़ता सागर है।।