कहाँ व्यस्त हो सभी साथियों,
पुण्य पटल पर आओ तो।
अज्ञानी हूँ मै तो भाई,
मुझको ज्ञान सिखाओ तो।।
कभी कभी यह शीशपटल यूँ ,
सूना क्यों हो जाता है।
सबके चुप चुप हो जाने से
मन मेरा घबराता है।
हिन्दी साथी सखा हमारे,
कहाँ व्यस्त हो जाते हो।
बहिने तो गृहकाज सँभाले,
आप कहाँ खो जाते हो।
एक अकेले दम घुटता है,
शीशपटल पर आओ तो।
सब के संगत आप तराने,
गाओ और सुनाओ तो।
पुण्य पटल के तुम्ही सितारे,
हिन्दी के तुम गौरव हो।
हमसे तो नाराज न होना,
इस उपवन के सौरभ हो।
माँ शारद के वरद पुत्र हो,
पुण्य प्रकाशी भाषा के।
मेरे तो सब भाँति पूज्यवर,
आशा अरु अभिलाषा के।
सीख और आशीषें रखना,
नेह स्नेह अभिलाषी हूँ।
कविताई मै तुम से सीखूँ,
रीत प्रीत उपवासी हूँ।
✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा ,सिकन्दरा,
दौसा,राजस्थान