*मेला*
मेला देखो घूमके,कितना रहता भीड़ ।
मानस रहते झूमते ,किसका कैसा नीड़ ।।
खुले हाट बाजार में , बेच रहे सामान ।
साज बजे भोंपू सुने , बैठ कहे श्रीमान ।।
जमघट देखे भागते ,उड़ने लगे गुबार ।
मीठा खारा खा रहे , मिलता खोया प्यार ।।
मेला ठेला घूमते , कटता किसका जेब ।
मोहक नारी मचलती , बजते अब पाजेब ।।
चूड़ी बिंदी देखते , सोचे नारी जात ।
चटपट झूले बैठती, मिलते ही ये सौगात ।।
पूड़ी सब्जी छानते , बनते जो पकवान ।
सट्टा बाजी हो रही ,कर गये सावधान ।।
*नवीन कुमार तिवारी*