शीर्षक – राधे-बसंत.
नटखट नंदलाला,नैन विशाला,
कैसो जादू कर डाला।
फिरे बावरिया,राधा वृंदावन,
हुआ मन बैरी मतवाला।।
कैसो जादू कर डाला।
फिरे बावरिया,राधा वृंदावन,
हुआ मन बैरी मतवाला।।
ले भागा मोरे हिय का चैना,
वो सुंदर नैनो वाला।
मोर मुकुट,पीताम्बर ओढ़े,
कमल दल अधरों वाला।।
वो सुंदर नैनो वाला।
मोर मुकुट,पीताम्बर ओढ़े,
कमल दल अधरों वाला।।
अबके बसंत,ना दुख का अंत,
बेचैन ह्रदय कर डाला।
पल पल तड़पाती मुरली धुन,
पतझड़ जीवन कर डाला।।
बेचैन ह्रदय कर डाला।
पल पल तड़पाती मुरली धुन,
पतझड़ जीवन कर डाला।।
कोयल की कूक,धरती का रूप,
यूँ घाव सा है कर जाता।
मेरो वो ताज,मनमुराद,मुरलीधर,
बन कर बसंत आ जाता।।
यूँ घाव सा है कर जाता।
मेरो वो ताज,मनमुराद,मुरलीधर,
बन कर बसंत आ जाता।।
आमोंकी डाल,कालियोंकी साज,
सब कुछ मन को भा जाता।
फूलों की गंध,बयार बसंत,
सोलह श्रृंगार बन जाता।।
सब कुछ मन को भा जाता।
फूलों की गंध,बयार बसंत,
सोलह श्रृंगार बन जाता।।
बाहों का हार करे इन्तजार,
कान्हा फिर से आ जाता।
सरसों के खेत,यादों की रेत,
बाग बाग गीला हो जाता।।
कान्हा फिर से आ जाता।
सरसों के खेत,यादों की रेत,
बाग बाग गीला हो जाता।।
इंदुरानी,स.अ, जूनियर हाईस्कूल, हरियाना, जोया,अमरोहा,उत्तर प्रदेश,244222,8192975925