होली के रंग कविता, आरती सिंह
लाल रंग हो अधीर,सज्जित होकर अबीर,
निकले हैं आज कंचन काया को सजाने |
हरे-नील रंग चले, लेकर उमंग चले
आज मधुर बेला में सबको रिझाने |
चाहे कोई अमीर होवे या फिर फ़क़ीर
रंग सभी को लगे हैं एक सा रंगाने |
प्रेमी हो, मित्र चाहे, बैरी हो या हो बंधु
रंग सभी को लगे हैं एक कर मिलाने |
आज कोई मूढ़ नहीं, ना कोई सयाना है
एक जैसे चेहरे लगा आईना बताने |
प्रेम रंग डूबे सब, भूल गए ज़ात-पाँत
ईश्वर के पुत्र लगे ईश को मानाने |
कान्हा ने राधा संग, खेले होली के रंग
त्रिभुवन को भक्ति प्रेम रस में डुबाने |