03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे
पाँवगाड़ी
साइकिल साधन एक है,सस्ता और आसान।
जिसकी मर्जी वो चले, चल दे सीना तान।।
बचपन साथी संग चढ़, बैठे मौज उड़ाय।
धक्का दें साथी गिरे त, उसको खूब चिड़ाय।।
आगे पीछे बीच में, तीन पीढ़ी बिठाय।
हँसते गाते बढ़े चलें, देख लोग हरसाय।।
खुद ढोती व बोझ संग, खर्चे भी कम कराय।
जब मिले मजबूर कोई, उसको लेत बिठाय।।
नर नारी सब चले, जग में सिर उठाय।
जब कहीं खराब होवे, जलदी से बन जाय।।
बढ़ती चर्बी और वसा, पैडल से घुल जाय।
कब्ज अम्लता दूर कर , सुंदर करे सुभाय।।
नित साइकिल का प्रयोग, अस्थि मजबूत बनाय।
जोड़ दर्द और गठिया, होने कभी न पाय।।
साधन छोटा है मगर, गली गली पहुँचाय।
वायु न दूषित करे,ईंधन खर्च बचाय।।
कितने भी धनवान हों, तनिको ना शरमाँय।
विषम समय बैद्य कहते, इसको रोज चलाँय।।
सुबह सायम जो साथी, साइकिल नित चलाँय,
स्वस्थ सुन्दर निरोग व, कांतिमय तन पाँय।।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
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