सायकिल दिवस कविता (Poem on World Cycle Day)
मनीभाई की कविता
अपने बचपन में , की थी जिससे यारी।
वो मेरी सायकिल,जिसमें करूँ सवारी ।
आज बदहाल पड़ा, कहीं किसी कोने में
सेवा कर गुजारी, जिसने जिंदगी सारी।
ना वो ईंधन लेता, ना फैलायें प्रदूषण ।
ना दुर्घटना का भय,सुरक्षित हो जीवन।
ना कोई झंझट दें, ना पार्किंग असुविधा
ना है कोई ड्राइविंग लायसेंस का टेंशन।
आज सायकिल छोड़ , ऐसा लगा मानो
मैंने अपने जीवन में, भूल की बड़ भारी।
अब सायकिल-यात्रा ,है बड़ी होशियारी।
साइकिल से हो जाती ,पैसों की बचत।
साइकिल से हो जाती , थोड़ी कसरत।
अनेक समस्याओं का है ,वो समाधान।
आज सायकिल बनी है , बड़ी जरूरत।
मोटापा बन जाता है,कई रोगों की खान।
सायकिल चलाके दूर करें, यह बीमारी।
अब सायकिल-यात्रा ,है बड़ी होशियारी।
मोटर,कार निकालती है, दिन रात जहर।
संकट के बादल मंडराते,अब गांव शहर।
यूं तो धन-दौलत की कमी नहीं है हमको
तथापि,सायकिल से करनी होगी सफर।
समय से पहले आओ करलें पूरी तैयारी ।
अब सायकिल-यात्रा ,है बड़ी होशियारी।
(रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर बसना )
रेखा मल्हान कृष्णा की कविता
साइकिल दिवस
अरे! क्या आप पर्यावरण दिवस मनाने जा रहे हो?
यानि निज धरा को स्वच्छ-सुन्दर बनाने जा रहे हो,
सर्वप्रथम प्रदूषण मुक्त निज धरा हमें बनानी होगी,
तो बताओ प्यारे! क्या तुम साइकिल चला रहे हो?
साइकिल है शान की सवारी प्यारों ,
धन-दौलत और सेहत बचाती ये प्यारों,
ना कोई पैसा खर्च, वायु को भी करे शुद्ध,
धीरे -धीरे डीजल- पैट्रोल हो रहा खत्म प्यारों ।
धीरे -धीरे जब तुम अपने गंतव्य तक जाओगे,
हाथ-पाँव भी तुम अपने मजबूत बनाओगे,
दुर्घटना के खतरों से भी बचकर निकल जाएंगे,
सुन्दर धरा सहित, स्वास्थ्य अपना भी पाओगे।
एयरकंडीशनर वाहन से तापमान धरा का बढ़ा रहे,
नन्हें-नन्हें शिशुओं, व नव अंकुर भी तुम खो रहे,
आज से ही तुम लेलो एक महा-प्रण प्यारों,
धरा को बचाओ प्यारे , जिसकी सुन्दरता खो रहे।
साइकिल है सबसे प्यारी-न्यारी ये सवारी,
जिसनें पूर्वजों की सेहत भी थी सँवारी,
आओ मिलकर पूर्व-परंपरा का पालन करें,
दोबारा अपनाएँ, साइकिल सवारी कृष्ण मुरारी।
रेखा मल्हान कृष्णा