निज जीवन अपनापन पा लूँ – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “
इस कविता में स्वयं के जीवन को दिशा देने का प्रयास किया गया है | इस कविता का विषय है "निज जीवन अपनापन पा लूँ"
निज जीवन अपनापन पा लूँ - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता " अंजुम "
इस कविता में स्वयं के जीवन को दिशा देने का प्रयास किया गया है | इस कविता का विषय है "निज जीवन अपनापन पा लूँ"
निज जीवन अपनापन पा लूँ - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता " अंजुम "
आना है, और चलें जाना है!जीवन का रीत पुराना है!! जीवन का नहीं ठिकाना है!जन्म लिया तो मर जाना है!! गाना है और बजना है!जीवन एक तराना है!! संगीत को मीत बनाओ!शब्दों को गीत बनाओ!! सा,रे,गा,मा,पा,धा नि,से,जीवन में राग बना!…
इस रचना में कवि ने जीवन में आगे बढ़ने को सभी को प्रेरित किया है |
राह नीर की छोड़ - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "
इस रचना में कवि ने अपनी कक्षा एवं शिक्षकों के सद्चरित्र होने का वर्णन किया है |
मेरी कक्षा - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "
इस रचना को व्यंग्य के रूप में पेश किया गया है | समाज में चल रहीं अनैतिक परम्पराओं पर कुठाराघात करने की एक कोशिश रचनाकार ने की है |
जुगाड़ - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "
एकर सेती भैया हो , जम्मो मनखे मन,ला मिलजुल के,लालच ला दुरीहा के पर्यावरण बचाए बर कुछ करना
पड़ही। लेकिन ये हा केवल मुंह अउ किताब भर मा तिरिया जाथे।
घाम के महीना छत्तीसगढ़ी कविता नदिया के तीर अमरइया के छांव हे।अब तो बिलम जा कइथव मोर नदी तीर गांव हे।। जेठ के मंझनिया के बेरा म तिपत भोंमरा हे।खरे मंझनिया के बेरा म उड़त हवा बड़ोरा हे।। बिन पनही…
पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा धरा का श्रृंगार देता, चारो ओर पाया जाता,इसकी आगोश में ही, दुनिया ये रहती।धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और जमीं,जीव सहभागिता को, पर्यावरण कहती। पर देखो मूढ़ बुद्धि, नही रही नर सुधि,काट दिए वृक्ष…
चंद पैसों के लिए वृक्ष का सौदा न करे। वृक्ष है, तो विश्व है। वृक्ष हमारी माँ के समान है, जो हमे जीवन प्रदान करके सब कुछ अर्पण करती है। अतः पेड़ लगाएं और पर्यावरण बचाएं🌻🌻
वृक्ष की पुकार - कविता, महदीप जंघेल
क्यों काट रहे हो जंगल (वन बचाओ आधारित कविता) क्यों कर रहे हो अहित अमंगल!क्यों काट रहे हो तुम जंगल!! धरती की हरियाली को तूने लूटा!बताओ कितने जंगल को तूने काटा!! वनों में अब न गुलमोहर न गूलर खड़ी है!हरी-भरी…